SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 366
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 204] [वशवकालिकसत्र [373] (प्रयोजनवश कभी बोलना पड़े तो) सुपवव (भोजनादि) को 'यह प्रयत्न से पकाया गया है' इस प्रकार कहे ; छेदन किये हुए (शाक आदि या बनादि) को 'प्रयत्न से काटा गया है। इस प्रकार कहे, (शृगार प्रादि) कर्म-(बन्धन-) हेतुक (कन्या के सौन्दर्य) को (देखकर) कहे (कि इस कन्या का) प्रयत्नपूर्वक लालन-पालन किया गया है, तथा गाढ (घायल हुए व्यक्ति) को यह प्रहार गाढ है, ऐसा (निदोष वचन) बोले // 42 / / [374] (त्रय-विक्रय के प्रसंग में साधु या साध्वी) (यह वस्तु) सर्वोत्कृष्ट है; यह बहुमूल्य (महार्थ) है, यह अतुल (अनुपम) है, इसके समान दूसरी कोई वस्तु नहीं है, (यह वस्तु बेचने योग्य नहीं है, अथवा) (इसका मूल्यांकन) अशक्य है; (यह वस्तु) अवर्णनीय (-प्रकथ्य) है; (अथवा इसकी विशेषता कहीं नहीं जा सकती); यह वस्तु अप्रीतिकर है; (अथवा यह वस्तु अचिन्त्य है), (और यह वस्तु प्रीतिकर है); (इत्यादि व्यापारविषयक) वचन न कहे // 43 // [375] (साधु या साध्वी से कोई गहस्थ किसी को संदेश कहने को कहे तब) 'मैं तुम्हारी सब बातें उससे अवश्य कह दूंगा' (अथवा किसी को सन्देश कहलाते हुए) (मेरी) 'यह सब (बात तुम उससे कह देना'; इस प्रकार न बोले ; (किन्तु सब प्रकार के पूर्वोक्त वचन सम्बन्धी विधि-निषेधों का) पूर्वापर विचार करके बोले, (जिससे कर्मबन्ध न हो) // 44 / / [376] अच्छा किया (आपने यह माल) खरीद लिया अथवा बेच दिया यह अच्छा हुआ, यह पदार्थ खराब है, खरीदने योग्य नहीं है, अथवा (यह माल) अच्छा है, खरीदने योग्य है; इस माल को ले लो (खरीद लो) अथवा यह (माल) बेच डालो (इस प्रकार) व्यवसाय-सम्बन्धी (वचन), साधु न कहे / / 45 // [377] (कदाचित् कोई गृहस्थ) अल्पमूल्य अथवा बहुमूल्य माल खरीदने या बेचने के विषय में (पूछे तो) व्यावसायिक प्रयोजन का प्रसंग उपस्थित होने पर साधु या साध्वी निरवद्य वचन बोले, (जिससे संयमधर्म में बाधा न पहुँचे या इस प्रकार से कहे कि क्रय-विक्रय से विरत साधुसाध्वियों का इस विषय में कोई अधिकार नहीं है / ) // 46 // [378] इसी प्रकार धीर और प्रज्ञावान् साधु असंयमी (गृहस्थ) की-यहाँ बैठ, इधर पा, यह कार्य कर, सो जा, खड़ा हो जा (या रह) या चला जा, इस प्रकार न कहे / / 47 / / विवेचन-साव द्य-प्रवत्ति के अनुमोदन का निषेध तथा योग्य वचन-विधान-प्रस्तुत 8 सूत्रगाथाओं (371 से 378 तक) में से अधिकांश गाथाओं में गृहस्थ के द्वारा की जाने वाली सावद्य क्रियाओं की अनुमोदना एवं प्रेरणा का निषेध एवं साथ ही वक्तव्य-वचनों का विधान प्रतिपादित है। कालिक सावद्यभाषा निषेध-प्रस्तुत 371 वी गाथा में परकृत सावद्य प्रवृत्तियों की मानसिक वाचिक अनुमोदना का निषेध किया गया है। उदाहरणार्थ-पूर्वकाल में अमुक संग्राम बहुत ही अच्छा हुआ, वर्तमान में ये संग्रामादि हो रहे हैं, ये अच्छे हो रहे हैं, तथा भविष्य में यदि संग्राम छिड़ गया तो अच्छा होगा, इत्यादि सावध भाषण साधु या साध्वी न करे / ऐसी सावध 30. दशव. पत्राकार (प्राचार्यश्री आत्मारामजी म.), प्र. 697 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy