________________ सप्तम अध्ययन : वाक्यशुद्धि] [283 परकृत सावधव्यापार के सम्बन्ध में सावधवचन निषेध 371. तहेव सावज्जं जोगं परस्सऽट्ठाए निट्टियं / कीरमाणं ति वा पच्चा सावज्ज नाऽलवे मुणी // 40 // 372. सुकडे ति सुपक्के ति सुच्छिन्ने सुहडे मडे / सुनिट्ठिए सुलट्ठि त्ति, सावज्जं वज्जए मुणी // 41 // 373. पयत्तपक्के ति व पक्कमालवे, पयत्तछिन्ने त्ति 4 व छिन्नमालवे / पयत्तलछे ति+ व कम्महे उथं पहारगाढे ति* व गाढमालवे // 42 // 374. सन्दुक्कस्सं परग्धं वा अउलं नस्थि एरिसं / अचक्कियमवतव्वं अचितं चेव णो वए / / 43 / / 375. सम्वमेयं वइस्सामि सम्वमेयं ति नो वए। अणुवीइ सव्वं सम्वत्थ एवं भासेज्ज पण्णवं // 44 // 376. सुक्कीयं वा सुविक्कोयं अकेज्जं केज्जमेव वा। इमं गिव्ह इमं मुंच पणियं, नो वियागरे / // 4 // 377. अप्पाघे वा महग्घे वा, कए व विक्कए विवा। पणियठे समुप्पन्ने अगवज्जं वियागरे / / 46 / / 378. तहेवाऽसंजयं धीरो आस एहि करेहि वा। +सय चिट्ठ वयाहि ति, नेवं भासेज्ज पण्णवं // 47 // [371] इसी प्रकार (किसी के द्वारा किसी प्रकार का) सावध (पापयुक्त) व्यापार (प्रवृत्ति या क्रिया) दूसरे के लिए किया गया हो, (वर्तमान में) किया जा रहा हो, अथवा (भविष्य में किया जाएगा) ऐसा जान कर (या देख कर, यह ठोक किया है। इस प्रकार का) सावध (पापयुक्त वचन) मुनि न बोले // 40 // [372] (कोई सावद्यकार्य हो रहा हो तो उसे देखकर) (यह प्रीतिभोज आदि कार्य) बहत अच्छा किया, (यह भोजन आदि) बहुत अच्छा पकाया है; (इस शाक आदि को या वन को) बहत अच्छा काटा है: अच्छा हा (इस कृपण का धन) हरण हया (चराया गया): (अच्छा हमा. वह दुष्ट) मर गया, (दाल या सत्तु में घी आदि रस, अथवा यह मकान आदि) बहुत अच्छा निष्पन्न हुअा है; (यह कन्या) अतोव सुन्दर (एवं विवाहयोग्य हो गई) है। इस प्रकार के सावध वचनों का मुनि प्रयोग न करे // 41 // पाठान्तर-x पयत्तछिन्नत्ति। + पयत्तलठित्ति। * पहारगाढ ति। अविक्किय। - अचित्तं / + सयं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org