________________ मनुस्मृति, 4 श्रीमद्भागवत आदि में ब्रह्मचारी के लिए गंध, माल्य, उबटन, अंजन, जूते और छत्र धारण का निषेध किया है। भागवत में वानप्रस्थ के लिए दातुन करने का भी निषेध है / 6 इस प्रकार हम देखते हैं कि जैन, बौद्ध और वैदिक तीनों परम्पराओं ने श्रमण और संन्यासी के लिए कष्ट सहन करने का विधान एवं शरीर-परिकर्म का निषेध किया गया है। यह सत्य है कि ब्राह्मण परम्परा ने शरीर-शुद्धि पर बल दिया तो जैन परम्परा ने आत्म-शुद्धि पर बल दिया। यहाँ पर यह सहज जिज्ञासा हो सकती है कि अायुर्वेदिक ग्रन्थों में जो बातें स्वास्थ्य के लिए आवश्यक मानी हैं उन्हें शास्त्रकार ने अनाचार क्यों कहा है ? समाधान है कि श्रमण शरीर से भी आत्म-शुद्धि पर अधिक बल दे। स्वास्थ्य रक्षा से पहले आत्म-रक्षा आवश्यक है "अप्पा ह खलु सययं रक्खियब्दो, सविदिएहि सुसमाहिएहिं" श्रमण सब इन्द्रियों के विषयों से निवत्त कर आत्मा की रक्षा करे। शास्त्रकार ने आत्मरक्षा पर अधिक बल दिया है, जबकि चरक और सुश्र त ने देहरक्षा पर अधिक बल दिया है। उनका यह स्पष्ट मन्तव्य रहा कि नगररक्षक नगर का ध्यान रखता है, गाड़ीवान गाड़ी का ध्यान रखता है, वैसे ही विज्ञ मानव शरीर का पूर्ण ध्यान रखे / 18 स्वास्थ्य-रक्षा के लिए चरक में निम्न नियम आवश्यक बताए हैसौवीरांजन-प्रांखों में काला सुरमा प्रांजना। नस्यकर्म-नाक में तेल डालना। दन्त-धावन–दतीन करना। जिहानिर्लेखन-जिह्वा के मैल को शलाका से खुरच कर निकालना। अभ्यंग-तेल का मर्दन करना / शरीर-परिमार्जन--तौलिए आदि के द्वारा मैल उतारने के लिए शरीर को रगड़ना, स्नान करना, उबटन लगाना / गन्धमाल्य-निपेवण–चन्दन, केसर, प्रभृति सुगन्धित द्रव्यों का शरीर पर लेप करना, सुगन्धित फूलों की मालाएं धारण करना / रत्नाभरणधारण-रत्नों से जटित आभूषण धारण करना / शोचाधान-पैरों को, मलमार्ग (नाक, कान, गुदा, उपस्थ) आदि को प्रतिदिन पुनः पुनः साफ करना ! सम्प्रसाधन- केश आदि को कटवाना तथा बालों में कंघी करना। -भागवत 7 / 12 / 12 94. मनुस्मृति // 177-179 95. अञ्जनाभ्यञ्जनोन्मर्दस्त्यवलेखामिपं मधु / सुगन्धलेपालंकारांस्त्यजेयुयें धृतव्रताः / / 96. केशरोमनख श्मश्र मलानि विभृयादतः / न धावेदप्मु मज्जेत त्रिकालं स्थण्डिलेशयः / / 97. नगरी नगरम्येव, रथस्येव रथी सदा। स्वशरीरस्य मेधावी, कृत्येष्ववहितो भवेत् / / -भागवत 1131813 -चरकसंहिता, सूत्रस्थान अध्ययन 5100 [ 34 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org