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________________ है-ग्रीष्म के पीछे के डेढ मास और वर्षा का प्रथम मास, यह ढाई मास और गर्मी का समय, जलन होने का समय, रोग का समय, काम (लीपने-पोतने आदि का समय) रास्ता चलने का समय तथा प्रांधी-पानी का समय। भगवान् महावीर की भांति तथागत बुद्ध की आचारसंहिता कठोर नहीं थी। कठोरता के अभाव में भिक्षु स्वच्छन्दता से नियमों का भंग करने लगे, तब बुद्ध ने स्नान के सम्बन्ध में अनेक नियम बनाये। एक बार तथागत बुद्ध राजगृह में विचरण कर रहे थे। उस समय पड्वर्गीय भिक्षु नहाते हुए शरीर को वृक्ष से रगड़ते थे। जंघा, बाहु, छाती और पेट को भी। जब भिक्षुओं को इस प्रकार कार्य करते हुए देखते तो लोग खिन्न होते, धिक्कारते / तथागत ने भिक्षुओं को सम्बोधित किया-'भिक्षुओ! नहाते हुए भिक्षु को वृक्ष से शरीर को न रगड़ना चाहिए, जो रगड़े उसको 'दुष्कृत' की आपत्ति है।' उस समय षड्वर्गीय भिक्षु नहाते समय खम्भे से शरीर को भी रगड़ते थे। बुद्ध ने कहा-'भिक्षुत्रो ! नहाते समय भिक्षु को खम्भे से शरीर को न रगड़ना चाहिए, जो रगड़े उसको दुक्कड ('दुष्कृत) की आपत्ति है।'८८ छाता-जूता विनय-पिटक में जते, खड़ाऊ, पादुका प्रति विधि-निषेधों के सम्बन्ध में चर्चाएं हैं। उस समय षड्वर्गीय भिक्षु जता धारण करते थे। वे जब जूता धारण कर गांव में प्रवेश करते, तो लोग हैरान होते थे। जैसे काम-भोगी गृहस्थ हों। बुद्ध ने कहा--भिक्षुत्रो ! जूता पहने गांव में प्रवेश नहीं करना चाहिए। जो प्रवेश करता है, उसे दुक्कड दोष है / . किसी समय एक भिक्षु रुग्ण हो गया / वह बिना जूता धारण किये गांव में प्रवेश नहीं कर सकता था। उसे देख बुद्ध ने कहा--भिक्षो ! मैं अनुमति देता हूँ बीमार भिक्षु को जता पहन कर गांव में प्रवेश करने की।" जो भिक्ष पूर्ण निरोग होने पर भी छाता धारण करता है, उसे तथागत बुद्ध ने पाचित्तिय कहा है। इस तरह बुद्ध ने छाता और जूते धारण करने के सम्बन्ध में विधि और निषेध दोनों बताये हैं / दीघनिकाय में तथागत बुद्ध ने भिक्षुओं के लिए माला, गंध-विलेपन, उबटन तथा सजने-सजाने का निषेध किया है। 3 87. विनयपिटक, पृ. 27, अनु. राहुल सांकृत्यायन, प्र. महाबोधि सभा, सारनाथ (बनारस) 88. विनयपिटक, पृ. 418 89. विनयपिटक, पृ. 204-208 90. विनयपिटक, पृ. 211 11. विनयपिटक पृ. 211 92. विनय पिटक पृ. 57 93. दीघनिकाय पृ. 3 [33 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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