________________ 274] [दशवकालिकसूब प्रवज्ञासूचक सम्बोधन-कई बार व्यवहार में सत्यभाषा होते हुए भी जिस-जिस देश में जो-जो शब्द नीचता, अवज्ञा, तुच्छता, निर्लज्जता या निष्ठुरता आदि के सूचक माने जाते हों उन शब्दों से बुद्धिमान साधु किसी को सम्बोधित नहीं करे। यथा--हे होल !, हे गोले ! , अरे कुत्ते !, हे वृषल-शूद्र ! , हे रंक (कंगाल) ! अरे अभागे ! आदि / होल आदि शब्द उन-उन देशों में प्रसिद्ध होने से निष्ठुरतावाचक या अवज्ञासूचक हैं। इनका अर्थ क्रमश: इस प्रकार है होल-निष्ठुर आमंत्रण, गोल-जारपुत्र या दासीपुत्र--गोला / श्वान-कुत्ता, वृषल-शूद्र, द्रमक-रंक (कंगाल), दुर्भग-अभागा।' प्रायिके आदि सम्बोधनों का निषेध क्यों ? स्त्रियों के लिए आयिके आदि सम्बोधन गृहस्थ के लिए तो ठीक है, किन्तु साधु-साध्वियों का कौटुम्बिक नाता छूट गया है / अतः अब ये सम्बोधन मोह, प्रासक्ति या चाटकारिता के द्योतक होने के कारण साध-साध्वी के लिए त्याज्य हैं। जनता साधु-साध्वी के मुह से ये शब्द सुनकर ऐसा अनुभव करती है कि यह श्रमणी या श्रमण अभी तक लोकसंज्ञा या चाटुकारिता को नहीं छोड़ पाया है। 3 हले' आदि सम्बोधनों का प्रयोग कहाँ और निषिद्ध क्यों ? 'हले हले'--शब्द सखी या तरुणी के लिए सम्बोधन शब्द है। इसका प्रयोग महाराष्ट्र या वरदातट में होता था। ये शब्द काम-राग के सूचक हैं। हला शब्द-प्रयोग लाटदेश में होता था। 'अन्ने' शब्दप्रयोग महाराष्ट्र में वेश्या होता था। यह नीच सम्बोधन है। 'भट्ट' पुत्ररहित स्त्री के लिए या लाटदेश में ननद के लिए प्रयुक्त होता था / यह सम्बोधन प्रशंसासूचक है। सामिणी (स्वामिनी) शब्द, तथा गोमिणी (गोमिनि) अर्थात् गायवाली लाट देश में प्रयुक्त होने वाले सम्मानसूचक अथवा चाटुतासूचक शब्द हैं / होले (गंवारिन), गोले (गोली, जारजा-दासी), वसुले (छिनाल) ये तीनों गोल देश में प्रयुक्त होते थे। ये तीनों शब्द निर्लज्जतासूचक हैं।' ___ सम्बोधन के लिए उपयुक्त शब्द-सूत्रगाथा 348 में साधु-साध्वियों द्वारा स्त्रियों के सम्बोधनार्थ एवं 351 में पुरुषों के सम्बोधनार्थ दो उपयुक्त नामों का निर्देश किया है--(१) गोत्रनाम और (2) व्यक्तिगत नाम / प्राशय यह है कि यदि किसी महिला अथवा पुरुष का नाम याद हो तो उस नाम से सम्बोधित करना चाहिए / यथा-(स्त्री को) देवदत्ता, कल्याणी बहन, मंगलादेवी आदि, (पुरुष को) इन्द्रभूति, नाम ज्ञात न हो तो गोत्र से सम्बोधित करना चाहिए / यथा (स्त्री को) हे गौतमी ! हे काश्यपी ! (पुरुष को) जैसे—गणधर इन्द्रभूति को गौतम, भगवान् महावीर को काश्यप / यदि नाम और गोत्र दोनों ज्ञात न हों तो वय, देश, गुण, ईश्वरता (प्रभुता) आदि की अपेक्षा से स्त्री या पुरुष को सभ्यतापूर्ण, शिष्टजनोचित एवं श्रोत जनप्रिय शब्दों से सम्बोधित करना चाहिए / यथा-(स्त्री को) हे मांजी, वयोवृद्ध, हे भद्रे ! हे धर्मशीले ! हे सेठानीजी ! , (पुरुष को। हे धर्मप्रिय, 12. (क) 'इह होलादिशब्दास्तत्तद्देशप्रसिद्धितो नैष्ठ्यादिवाचकाः।' --हा. व., पत्र 215 (ख) दशवै. (प्राचार्यश्री प्रात्मारामजी म.) पत्राकार, पृ. 656 (ग) अगस्त्य चूणि, पृ. 168 13. जि. चू., पृ. 250 14. (क) अ. चू., पृ. 168 (ख) जिनदास चूणि, पृ. 250 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org