________________ सप्तम अध्ययन : वाक्यशुद्धि] [273 भाषासम्बन्धी अन्य विधि-निषेध 345. तहेव 'होले' 'गोले' त्ति, 'साणे' वा 'वसुले' त्ति य / 'दमए' 'दुहए' वा वि, न तं भासेज्ज पण्णवं // 14 // 346. अज्जिए पज्जिए वा वि अम्मो माउसिय त्ति वा। पिस्सिए भाइणेज्ज त्ति, धूए नत्तुणिए त्ति य // 15 // 347. हले हले त्ति अन्ने त्ति, भट्ट सामिणि गोमिणि / होले गोले वसुले त्ति, इत्थियं नेवमालवे // 16 // 348. नामधेज्जेण णं बूथा, इत्थीगोत्तेण वा पुणो।। जहारिहमभिगिज्य आलवेज्ज लवेज्ज वा // 17 // 349. अज्जए पज्जए वा वि बप्पो चल्लपिउ ति य / माउला भाइणेज्ज त्ति, पुत्ते गत्तुणिय ति य // 18 // 350. हे हो हले त्ति, अन्ने त्ति, भट्टा सामिय गोमिय / / होल गोल वसुलत्ति पुरिसं नेवमालवे // 19 // 351. नामधेज्जेण णं ब्रूया पुरिसगोत्तेण वा पुणो / जहारिहमभिगिज्ज्ञ आलवेज्ज लवेज्ज वा // 20 // [345] इसी प्रकार प्रज्ञावान साधु, 'रे होल ! , रे गोल !, प्रो कुत्ते ! , ऐ वृषल (शुद्र) !, हे द्रमक ! , यो दुर्भग !' इस प्रकार न बोले // 14 // [346-347-348] स्त्री को–'हे प्रायिके (हे दादी हे ! नानो ! ) हे प्रायिके (हे परदादो !, हे परनानी !), हे अम्बे ! (हे मां ! ), हे मौसी !, हे बुना !, ऐ भानजी ! , अरी पुत्री !,हे नातिन (पोती) !, हे हले, हे हला !, हे अन्ने !, हे भट्टे!, हे स्वामिनि !, हे गोमिनि !, हे होले ! हे गोले !, हे वृषले! -इस प्रकार आमंत्रित न करे / किन्तु (प्रयोजनवश) यथायोग्य गुण-दोष, वय, आदि का विचार कर एक बार या बार-बार उन्हें उनके नाम या गोत्र से आमन्त्रित करे / / 15-16-17 // _ [346-350-351] पुरुष को-'हे आर्यक ! (हे दादा ! या हे नाना !), हे प्रार्यक (हे परदादा ! हे परनाना !), हे पिता !, हे चाचा!, हे मामा ! , हे भानजा!, हे पुत्र!, हे पोते !, हे हल !, हे अन्न !, हे भट्ट !, हे स्वामिन् ! , हे गोमिन् !, हे होल!, हे गोल ! हे वृषल !' इस प्रकार आमंत्रित न करे। किन्तु (प्रयोजनवश) यथायोग्य गुण-दोष वय आदि का विचार कर एक बार या बार-बार उन्हें उनके नाम या गोत्र से आमंत्रित करे // 18-19-20 // विवेचन--अयोग्य सम्बोधनों का निषेध और योग्य सम्बोधनों का निर्देश-प्रस्तुत 7 सूत्रगाथाओं में से 348-351, इन दो गाथाओं को छोड़कर शेष 5 गाथाओं में तुच्छतादिसूचक सम्बोधनों का निषेध, तथा शेष दो गाथाओं में योग्य सम्बोधनों का विधान किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org