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________________ 256]. [वशवकालिक सूत्र गंभीर-विजया-गंभीर का अर्थ अप्रकाश और छिद्र का अर्थ-विभाग है / जिनके विभाग अप्रकाशकर होते हैं / बुद्ध-वृत्तमहिढगा-तीर्थंकरों के वचनों को मानने वाले / 46 सोलहवाँ प्राचारस्थान : गहनिषद्या-वर्जन 319. गोयरग्गपविट्ठस्स निसेज्जा जस्स कप्पई / इमेरिसमणायारं आवज्जइ अबोहियं // 56 // 320. विवत्ती बंभचेरस्स पाणाणं च वहे वहो। वणीमागपडिग्घाओ पडिकोहो य प्रगारिणं // 57 / / 321. अगुत्ती बंभचेरस्स इत्थीओ यावि संकणं / कुसीलवड्डणं ठाणं दूरओ परिवज्जए // 58 // 322. तिहमन्नयरागस्स निसेज्जा जस्स कम्पई / जराए अभिभूयस्स वाहियस्स तवस्सिणो // 59 // [316] भिक्षा के लिए प्रविष्ट जिस (साधु) को (गृहस्थ के घर में) बैठना अच्छा लगता है, वह इस प्रकार के (मागे कहे जाने वाले) अनाचार को (तथा उसके) प्रबोधि (रूप फल) को प्राप्त होता है // 56 // [320] (गृहस्थ के घर में बैठने से) ब्रह्मचर्य-व्रत का पालन न करने में विपत्ति खड़ी हो जाती है / प्राणियों का वध होने से संयम का घात हो जाता है और भिक्षाचरों को अन्तराय और घर वालों को क्रोध उत्पन्न होता है // 57 / / [321] (गृहस्थ के घर में बैठने से) ब्रह्मचर्य की असुरक्षा (अगुप्ति) होती है; स्त्रियों के प्रति भी शंका उत्पन्न होती है / अतः यह गृहस्थगृहनिषद्या कुशीलता बढ़ाने वाला स्थान (भयस्थल) है, (अतः साधु) इसका दूर से ही परिवर्जन कर दे // 58 / / 46. (क) दशवं. (प्राचार्य श्री प्रात्मारामजी महाराज), पृ. 369 (ख) निसिज्जा नाम एगे कप्पो, अणेगा वा कप्पा / --जिन. चूणि, पृ. 229 (ग) पीढगं-पलालपीठ गादि। -जि. चूणि, पृ. 229 पीठके-वेत्रमयादी। -हारि. वृत्ति, पृ. 204 (घ) गंभीरं अप्पगासं भण्णइ, विजनो नाम मग्गणंति वा, पिथकरणति वा, विवेयणंति वा विजनो त्ति वा एगट्ठा। --जिन. चूणि, पृ. 229 गंभीरं-अप्रकाशं विजय प्राश्रयः अप्रकाशाश्रया एते। -हारि. व. 204 (ङ) दशवं. (आचार्य श्री प्रात्मारामजी म.), पृ. 365 पाठान्तर-* अवहे वहो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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