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________________ 252] विशवकालिकसूत्र 310. पिंडं सेज्जं च वत्थं च, चउत्थ पायमेव य / __ अकप्पियं न इच्छेज्जा, पडिग्गाहेज्ज कप्पियं // 47 // 311. जे नियागं ममायंति कोयमुद्देसियाऽऽहडं / वहं ते समणुजाणंति, इइ युत्तं . महेसिणा / / 48 // 312. तम्हा असण-पाणाई+ कीयमुद्देसियाऽऽहडं / वज्जयंति ठियप्पाणो निग्गंथा धम्मजीविणो // 49 // [30] जो आहार आदि (निम्नोक्त) चार पदार्थ ऋषियों के लिए अकल्पनीय (अभोग्य) हैं, उनका विवर्जन करता हुआ (साधु) संयम का पालन करे / / 46 / / [310] साधु या साध्वी अकल्पनीय पिण्ड ( पाहार ), शय्या (वसति, उपाश्रय या धर्मस्थानक), वस्त्र (इन तीन) और चौथे पात्र को ग्रहण करने की इच्छा न करे, ये कल्पनीय हों तो ग्रहण करे // 47 / / [311] जो साधु-साध्वी नित्य आदरपूर्वक निमंत्रित कर दिया जाने वाला (नियाग), क्रीत (साधु के निमित्त खरीदा हुना), प्रौद्देशिक (साधु के निमित्त बनाया हुआ) और पाहृत (निर्ग्रन्थ के निमित्त दूर से सम्मुख लाया हुआ) पाहार ग्रहण करते हैं, वे (प्राणियों के) वध का अनुमोदन करते हैं, ऐसा महर्षि महावीर ने कहा है / / 48 // [312] इसलिए धर्मजीवी, स्थितात्मा (स्थितप्रज्ञ), निर्ग्रन्थ, क्रीत, प्रौद्देशिक एवं प्राहृत (आदि दोषों से युक्त) अशन-पान आदि का वर्जन करते हैं / / 46 / / विवेचन-साधुवर्ग को चार मुख्य आवश्यकताएँ : उनमें अकल्प्य का वर्जन, कल्प्य का ग्रहण प्रस्तुत चार सूत्रगाथाओं (306 से 312 तक) में चार मुख्य आवश्यकताओं का निरूपण करके उनमें अकल्पनीय का वर्जन और कल्पनीय को ग्रहण करने का निर्देश किया गया है। साधुवर्ग की 4 मुख्य आवश्यकताएँ-(१) पिण्ड (आहार-पानी), (2) शय्या (आवासस्थान), (3) वस्त्र और (4) पात्र / आचारांगसूत्र, पिण्डनियुक्ति आदि में इन चारों के सम्बन्ध में कौन-सा, कैसा, कब और किस स्थिति में, किस दाता द्वारा ग्रहण करना कल्पनीय है ? कौन-सा पिण्ड आदि अकल्पनीय है ? इसका विस्तृत वर्णन है / प्रकल्प्य और कल्प्य की मीमांसा और अकल्प्यनिषेध का रहस्य-जो पिण्ड, शय्या, वस्त्र और पात्र अकल्प्य हो, उसे ग्रहण करना तो दूर रहा, उसे ग्रहण करने की इच्छा भी न करे / अकल्प्य का विचार इस प्रकार है-अकल्प्य दो प्रकार के हैं-शैक्षस्थापना-अकल्प्य और प्रकल्पस्थापना-अकल्प्य / शैक्ष (नवदीक्षित जो कल्प, अकल्प को न जानता हो) के द्वारा लाया हुआ या याचित आहार, वसति, वस्त्रग्रहण तथा वर्षाकाल में किसी को प्रव्रजित करना या ऋतुबद्ध काल में अयोग्य को प्रवजित 40. पाठान्तर-उत्त। + पाणाई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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