SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 330
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 248] [दशवकालिकसूत्र 298. तम्हा एवं विद्याणिता दोसं दोग्गइबड्ढणं / तेउकायसमारंभं जावज्जोवाए वज्जए / / 35 / / 299. अनिलस्स समारंभं बद्धा मन्नति तारिसं / सावज्जबहुलं चेव, नेय ताईहिं सेविध / / 36 / / 300. तालियंटेग पतेष साहाविहरणेण वा। न ते वोइउमिच्छति, बायायेऊण वा परं / / 37 / / 301. जं पि बत्थं वा पायं वा कंबलं पायपुछगं / न ते वायमुई रंति जयं परिहरंति य / / 38 / / 302. तम्हा एयं वियाणित्ता दोसं दोग्गइवड्ढणं / बाउकाय-समारंभं जावज्जीवाए वज्जए।। 39 / / 303. वणस्सइं न हिसंति मणसा वयसा कायसा / तिविहेण करणजोएण संजया सुसमाहिया // 40 / / 304. वणस्सइं विहिंसंतो हिसई उ तदस्सिए / तसे य विविहे पाणे चक्खुसे य प्रचक्खुसे // 41 // 305. तम्हा एयं वियाणित्ता दोसं दोग्गइ-बढणं / वणस्सइ-समारंभं जावज्जीवाए वज्जए // 42 / / 306. तसकायं न हिसंति मणसा वयसा कायसा / तिविहेण करणजोएण संजया सुसमाहिया // 43 // 307. तसकायं विहिसंतो, हिसई उ तदस्सिए / तसे य विविहे पाणे च खुसे य अचाखुसे / 44 / / 308. तम्हा एवं विद्याणिता, दासं दोग्गइ-वडणं / तसकाय-समारंभं जावज्जोवाए बज्जए / / 45 / / [289] श्रेष्ठ समाधि वाले संयमी (साधु-साध्वो) मन, वचन और काय,इस विविध योग से और कृत, कारित एवं अनुमोदन, इस त्रिविध करण से पृथ्वोकाय को हिंसा नहीं करते // 26 // 290] पृथ्वीकाय की हिंसा करता हुया (साधक) उसके प्राश्रित रहे हुए विविध प्रकार के चाक्षुष (नेत्रों से दिखाई देने वाले) और अचाक्षुष (नहीं दिखाई देने वाले) त्रस अोर स्थावर प्राणियों की हिंसा करता है // 27 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy