________________ छठा अध्ययन : महाचारकथा] [247 दोष बतलाया गया है, संयमविराधना से सभी दोषों का समावेश हो गया। यथा-रात्रि में भिक्षाटन करने जाएगा, तब अन्धकार हो जाने से विशेष निर्लज्जता भी बढ़ सकती है, फिर मैथुनादि दोषों का प्रसंग भी उपस्थित होना सम्भव है। कभी-कभी स्वार्थ-सिद्धि के लिए असत्य का प्रयोग भी कर सकता है, अदत्तादान और परिग्रह का भी भाव रात्रि में गृहस्थों के घरों में जाने से हो सकता है, अतः रात्रि में आहार-विहार से संयमविराधना के अन्तर्गत ये सब दोष उत्पन्न हो सकते हैं / सातवें से बारहवें प्राचारस्थान तक : षट्जीवनिकाय-संयम 289. पुढविकायं न हिंसंति मणसा वयसा कायसा। तिविहेण करणजोएण संजया सुसमाहिया // 26 // 290. पुढविकायं विहिसंतो हिंसई तु तदस्सिए। तसे य विविहे पाणे चक्खुमे य प्रचक्खुसे / / 27 / / 291. तम्हा एयं वियाणित्ता दोसं दोग्गइवड्ढणं / पुढविकाय-समारंभं जावज्जीवाए+ वज्जए / // 28 // 292. प्राउकायं न हिसंति मणसा वयसा कायसा। तिविहेण करणजोएण संजया सुसमाहिया // 26 // 293. आउकायं विहिसंतो हिसई उ तदस्सिए / तसे य विविहे पाणे चक्खुसे य अचक्खुसे / / 30 // 294. तम्हा एयं वियाणित्ता, दोसं दोग्गइवड्ढणं / प्राउकाय-समारंभं जावज्जीवाए वज्जए // 31 // 295. जायतेयं न इच्छंति पावगं जलइत्तए / तिक्खमन्नयरं सत्थं सवओ वि दुरासयं // 32 // 296. पाईणं पडिणं वा वि उड्ढे अणुदिसामयि / अहे दाहिणो वावि दहे उत्तरप्रो वि य // 33 // 297. भूयाणमेसमाघाओ हव्ववाहो, न संसप्रो। तं पईव-पयावट्ठा संजया किंचि नाऽऽरभे // 34 // 36. (क) दशवकालिकसूत्रम् (प्राचार्य श्री आत्मारामजी महाराज), पृ. 343 (ख) दशवं. (संतबालजी), पृ. 77 (ग) विशेष स्पष्टीकरण के लिए 'जैन आचार : सिद्धान्त और स्वरूप' ग्रन्थ देखें। पाठान्तर--+ जावज्जीवाई। x तिक्खमन्नयरा सत्था / —अगस्त्यचणि / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org