________________ 238] विशवकालिकसूत्र (4) लोभ से असत्य-सरस भोजन की प्राप्ति के लोभ से एषणीय नीरस भोजन को अनेषणीय कहना, (5) भय से असत्य-असत्याचरण करके प्रायश्चित्त के भय से उसे अस्वीकार करना / (6) हास्यवश असत्य-हंसी-मजाक में या कुतूहलवश असत्य बोलना, लिखना / 5 हिंसक वचन सत्य होते हुए भी असत्य माना गया है। इसलिए उसका भी साधुवर्ग के लिए निषेध है। हिंसक वचन में कर्कश, कठोर, वधकारक, छेदन-भेदनकारक, निश्चयकारक या संदिग्ध आदि सब परपीड़ाकारक वचन आ जाते हैं। अतः अपने निमित्त या दूसरों के निमित्त (अर्थात्स्वार्थ या परार्थ) दोनों दृष्टियों से मन-वचन-काया से, कृत, कारित, अनुमोदित रूप से इन सब असत्याचरणों का परित्याग साधुवर्ग के लिए अनिवार्य है; क्योंकि असत्य संसार के सभी मतों और धर्मों के साधु पुरुषों-सज्जनों एवं शिष्ट पुरुषों द्वारा निन्दनीय है / यह अविश्वास का कारण है / ' सत्य की प्राराधना के बिना शेष शिक्षापदों (वतों) का महत्त्व नहीं-बौद्ध धर्म विहित पंचशिक्षापदों में भी मषावाद-परिहार (सत्य) को अधिक महत्त्वपूर्ण इसलिए माना गया इसकी आराधना के बिना, अन्य शिक्षापदों की आराधना सम्भव नहीं होती। एक उदाहरण भी जिनदासचूणि में प्रस्तुत किया गया है-एक उपासक (बौद्ध श्रावक) ने मृषावाद के सिवाय शेष चार शिक्षापद ग्रहण कर लिये। मृषावाद की छूट के कारण वह अन्य शिक्षापदों को भंग करने लगा। उसके मित्र ने उससे कहा--"तुम इन शिक्षापदों (व्रतों) को क्यों तोड़ते हो।" उसने कहा-'यह सरासर झूठ है, मैं कहाँ इन्हें तोड़ता हूँ ?" मैंने मृषावाद का प्रत्याख्यान (त्याग) नहीं किया था, इसलिए इन सब शिक्षापदों को हृदय में धारण करके रखे हैं। इस प्रकार सत्य शिक्षापद (व्रत) के अभाव में उसने शेष सभी शिक्षापदों को भंग कर दिया / तृतीय प्राचारस्थान : अदत्तादान-निषेध (अचौर्य) 276. चित्तमंतमचित्तं वा अप्पं वा जइ वा बहुं / दंतसोहणमेत्तं पि प्रोग्गहंसि अजाइया // 13 // 15. हारि. वृत्ति, पृ. 197 16. (क) हिंसग जं सच्चमवि पीडाकारि, मुसा-वितह, तदुभयं ण बूया, ण वयेज्ज / -अगस्त्य० चूर्णि पृ. 145 (ख) “अपि च न तच्चवचनं सत्यमतच्चवचनं न च / यद् भूतहितमत्यन्तं तत्सत्यमितरं मषा / " -जिन, चूणि, पृ. 218 (ग) दशवै. (आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज) पृ. 325-326 17. (क) वही, पृ. 327 (ख) “जो सो मुसावाग्रो, एस सब्बसाहूहि गरहिनो, सक्कादिणोऽवि मुसावादं गरहंति / तत्थ सक्काणं पंचण्हं सिक्खावयाणं मुसाबानो भारियतरोत्ति / एत्थ उदाहरणं.-एगेण उवासएण"। एतेण कारणेण तेसिपि मसावायो भज्जो सम्वसिक्खापदेहितो। -जिनदासणि, प्र. 218 (ग) सर्वस्मिन्नेव सर्वसाधुभिः गहितो-निन्दितः, सर्वव्रतापकारित्वात् प्रतिज्ञाताऽपालनात् / हारि. वृत्ति, पत्र 197 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org