________________ छट्ठा अध्ययन : महाचारकथा] [233 __ कहं भे पायारगोयरो ? -जिज्ञासुओं का प्रश्न है-आपका आचारगोचर कैसा है ? आचारगोचर : अर्थ-(१) आचार का विषय, (2) साधु के प्राचार के अंगभूत छह व्रत, (3) क्रियाकलाप, (4) ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य, यह पंचविध प्राचार और गोचर अर्थात् भिक्षाचरी।" प्राचार्य द्वारा निर्ग्रन्थाचार की दुश्चरता और अठारह स्थानों का निरूपण 266. तेसि सो निहुमो दंतो, सव्वभूयसुहाबहो।। सिक्खाए सुसमाउत्तो प्राइक्खइ वियक्खणो // 3 // 267. हंदि ! धम्मऽत्यकामाणं निग्गंथाणं सुणेह मे। आयारगोयरं भीमं सयलं दुरहिट्ठियं // 4 // 268. नऽनस्थ एरिसं वुत्तं, जं लोए परमदुच्चरं / विउलट्ठाणमाइस्स न भूयं, न भविस्सइ // 5 // 269. सखुड्डग-वियत्ताणं वाहियाणं च जे गुणा। __ अखंड-फुडिया कायव्वा तं सुणेह जहा तहा // 6 // 270. दस अट्ठ य ठाणाई, जाई बालोऽवरज्झई / तत्थ अन्नयरे ठाणे, निग्गंथत्ताओ भस्सई // 7 // [क्यछक्कं कायछक्क, अकप्पो गिहिमायणं / पलियंक-निसेज्जा य, सिणाणं सोहवज्जणं // ]+ [ 266 ] ( ऐसा पूछे जाने पर ) वे निभृत ( शान्त ), दान्त, सर्वप्राणियों के लिए सुखावह, ग्रहण और प्रासेवन, शिक्षामों से समायुक्त और परम विचक्षण गणी उन्हें (राजा आदि प्रश्नकर्ताओं से) (उत्तर में) कहते हैं-॥३॥ [267] हे राजा प्रादि जनो! धर्म के प्रयोजनभूत मोक्ष की कामना वाले निम्रन्थों के भीम, (कायर पुरुषों के लिए) दुरधिष्ठित (दुर्धर) और सकल (अखण्डित) प्राचार-गोचर (आचार का विषय) मुझ से सुनो / / 4 / / 5. (क) पायारस्स प्रायारे वा गोयरो-पायारगोयरो। गोयरोपूण विसयो। -अ.च., पृ.१३९ (ख) प्राचारगोचर:-क्रियाकलापः / -हारि. वृत्ति, पत्र 191 (ग) प्राचार:-साधुसमाचारस्तस्य गोचरो विषयो-व्रतषट्कादिराचारगोचरोऽथवा पाचारश्च ज्ञानादिविषय पंचधा, गोचरश्च - भिक्षाचर्येत्याचारगोचरम् / --स्था. 8 / 3 / 651 वृ. पत्र 418 अधिक पाठ-+ इस चिह्न से अंकित माया नियुक्ति में भी है, परन्तु वर्तमान में कई प्रतियों में मूल सूत्रगाथा के रूप में अंकित की गई है। वस्तुतः यह नियुक्तिगाथा है। —सं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org