________________ अनुसरण नहीं किया, इसलिए कितने ही विज्ञ दशवकालिकनियुक्ति की गाथा को मूलनियुक्ति की गाथा नहीं मानते / 5 प्राचारांगण में उल्लेख है कि स्थूलभद्र की बहिन साध्वी यक्षा महाविदेह क्षेत्र में भगवान् सीमंधर के दर्शनार्थ गई थीं लौटते समय भगवान ने उसे भावना और विमक्ति ये दो अध्ययन प्रदान किए। 6 आवश्यकणि में भी दो अध्ययनों का वर्णन है। प्रश्न यह है कि प्राचार्य हेमचन्द्र ने चार अध्ययनों का उल्लेख किस आधार से किया ? आचारांगनियुक्ति में इस घटना का किञ्चिन मात्र भी संकेत नहीं है तथापि आचारांगणि और अावश्यक चणि में यह घटना किस प्रकार प्राई, यह शोधार्थियों के लिए अन्वेषणीय है। ग्रन्थ-परिमारण दशवकालिक के दस अध्ययन हैं, उनमें पांचवें अध्ययन के दो और नौवं अध्ययन के चार उद्देशक हैं, शेष अध्ययनों के उद्देशक नहीं हैं। चौथा और नौवा अध्ययन गद्य-पद्यात्मक है, शेष सभी अध्ययन पद्यात्मक हैं / टीकाकार के अभिमतानुसार दशवकालिक के पद्यों की संख्या 509 है और चूलिकाओं की गाथासंख्या 34 है। चूर्णिकार ने दशवकालिक की पद्यसंख्या 536 और चलिकाओं की पद्यसंख्या 33 बताई है। पुण्य विजय जी महाराज द्वारा संपादित 'सकालियसत्त' में दशवकालिक की गाथाएं 575 बताई हैं।६७ मुनि कन्हैयालाल जी 'कमल' ने दशवैकालिक-संक्षिप्तदर्शन में लिखा है 'इसमें पद्यसूत्र गाथायें 561 हैं और गद्यसूत्र 48 है। आचार्य तुलसी ने दसवेनालिय' ग्रन्थ की भूमिका में दशवकालिक की श्लोक-संख्या 514 तथा सूत्र संख्या 31 लिखी है। इस प्रकार विभिन्न ग्रन्थों में गाथासंख्या और सुत्रसंख्या में अन्तर है। धर्म : एक चिन्तन दशवकालिक का प्रथम अध्ययन 'द्र मपुष्पिका' है। धर्म क्या है ? यह चिर-चिन्त्य प्रश्न रहा है / इस प्रश्न पर विश्व के मूर्धन्य मनीषियों ने विविध दृष्टियों से चिन्तन किया है। प्राचारांग में स्पष्ट कहा है कि तीर्थकर की आज्ञाओं के पालन में धर्म है।" मीमांसादर्शन के अनुसार वेदों की आज्ञा का पालन ही धर्म है। प्राचार्य मनु ने लिखा है-राग-द्वेष से रहित सज्जन विज्ञों द्वारा जो आचरण किया जाता है और जिस आचरण को हमारी अन्तरात्मा सही समझती है, वह आचरण धर्म है। 3 महाभारत में धर्म की परिभाषा इस प्रकार प्राप्त है—जो प्रजा को धारण करता है अथवा जिससे समस्त प्रजा यानी समाज का संरक्षण होता है, वह धर्म है। 74 प्राचार्य शुभचन्द्र ने धर्म को भौतिक और प्राध्यात्मिक अभ्युदय का साधन 65. दशवकालिक एक समीक्षात्मक अध्ययन, पृ. 52 66. सिरियो पब्वइतो अभत्तठेण कालगतो महाविदेहे य पुच्छिका गता अज्जा दो वि अज्झयणाणि भावणा विमोत्ती य आणिताणि / / यावश्यक चूणि, पृ. 188 67. श्री महावीर जैन विद्यालय, बम्बई, जैन पागम ग्रन्थमाला ग्रन्थांक 15, पृष्ठ 81 68. दशवकालिकसूत्र मूल, प्रकाशक-पागम अनुयोग ट्रस्ट, अहमदाबाद 13, पृ. पांच 69. भूमिका, पृष्ठ 28-29, प्र. जैन विश्वभारती, लाडनू 71. प्राचारांग, श६।२।१८१ 72. मीमांसादर्शन, शश२ 73. मनुस्मृति, 2 / 1 74. महाभारत, कर्ण पर्व, 69 / 59 [ 29 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org