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________________ का अर्थ मूल शास्त्र का उत्तर भाग है। यही कारण है कि अगस्त्यसिंह स्थविर ने और जिनदासगणी महत्तर ने दशवकालिक की चलिका को उपका 'उत्तर-तंत्र' कहा है। तंत्र, सूत्र और ग्रन्थ ये सभी शब्द एकार्थक हैं। जो स्थान प्राधुनिक युग में ग्रन्थ के परिशिष्ट का है. वही स्थान अतीतकाल में चूलिका का था। नियुक्तिकार की दृष्टि से मूल सूत्र में अवणित अर्थ का और वणित अर्थ का स्पष्टीकरण करना चलिका का प्रयोजन है। प्राचार्य शीलांक के अनुसार चलिका का अर्थ अग्र है और अग्र का अर्थ उत्तर भाग है। दस अध्ययन संकलनात्मक हैं, किन्तु चुलिकाओं के सम्बन्ध में मूर्धन्य मनीषियों में दो विचार हैं। कितने ही विज्ञों का यह अभिमत है कि वे प्राचार्य शय्यम्भवकृत हैं। दस अध्ययनों के नि!हण के पश्चात उन्होंने चूलिकाओं की रचना की। सूत्र और चूलिकाओं की भाषा प्राय: एक सदृश है इसलिए अध्ययन और चलिकाओं के रचयिता एक ही व्यक्ति हैं। कितने ही विज्ञ इस अभिमत से सहमत नहीं हैं। उनका अभिमत है कि चलिकाएं अन्य लेखक की रचनाएं हैं जो बाद में दस अध्ययनों के साथ जोड़ दी गई। प्राचार्य हेमचन्द्र ने 'परिशिष्ट-पर्व' ग्रन्थ में लिखा है कि प्राचार्य स्थलभद्र की बहिन साध्वी यक्षा ने अपने अनुज मुनि श्रीयक को पौरुषी, एकाशन और उपवास की प्रबल प्रेरणा दी। श्रीयक ने कहा--बहिन ! मैं क्षधा की दारुण बेदना को सहन नहीं कर पाऊँगा। किन्तु बहिन की भावना को सम्मान देकर उसने उपवास किया पर वह इतना अधिक सुकुमार था कि भुख को सहन न कर सका और दिवंगत हो गया / मुनि श्रीयक का उपवास में मरण होने के कारण साध्वी यक्षा को अत्यधिक हादिक दुःख हुआ। यक्षा ने मुनि श्रीयक की मृत्यू के लिए अपने को दोषी माना। श्रीसंघ ने शासनदेवी की साधना की। देवी की सहायता से यक्षा साध्वी महाविदेह क्षेत्र में सीमधर स्वामी की सेवा में पहुंची। सीमंधर स्वामी ने साध्वी यक्षा को निर्दोष बताया और उसे चार अध्ययन चलिका के रूप में प्रदान किए। संघ ने दो अध्ययन प्राचारांग की तीसरी और चौथी चलिका के रूप में और अन्तिम दो अध्ययन दशकालिक चलिका के रूप में स्थापित किए। दशवकालिक नियुक्ति की एक गाथा में इस प्रसंग का उल्लेख मिलता है। 3 प्राचार्य हरिभद्र ने दूसरी चलिका की प्रथम गाथा की व्याख्या में उक्त घटना का संकेत किया है। 4 पर टीकाकर ने नियुक्ति की गाथा का 61. श्री संघायोपदा प्रेषीन्मन्मुखेन प्रसादभाक् / श्रीमान्सीमन्धर स्वामी चत्वार्यध्ययनानि च / / भावना च विमुक्तिश्च रतिकल्पमथापरम् / तथा विचित्रचर्या च तानि चैतानि नामतः / / अप्येकया वाचनया मया तानि धृतानि च। उदगीतानि च संघाय तत्तथाख्यानपूर्वकम् / / आचारागस्य चले द्वे पाद्यमध्ययनद्वयम् / दशवकालिकस्यान्यदथ संघेन योजितम् // --परिशिष्ट पर्व, 9497-100, पृ. 90 63. पायो दो चलियाओ आणीया जविखणीए अज्जाए। सीमधरपासायो भवियाण विबोहगट्टाए / -दशवकालिक नियुक्ति. गा. 447 64. एवं च वृद्धवाद: .. कयाचिदायं या महिष्णुः कुरगडुकप्रायः संयतश्चातुर्मासिकादाबुपवासं कारितः, स तदाराधनया मृत एव, ऋपिघातिकाहमित्युद्विग्ना सा तीर्थंकरं प्रच्छामीति गुणाजितदेवतया नीता श्रीसीमन्धर स्वामिसमीर्ष, प्रप्टो भगवान , अष्टचित्ताऽधातिकेत्यभिधाय भगवतेमा चुडा ग्राहितेति / --दशव. हारिभद्रीया वत्ति, पत्र 278-279 | 28 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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