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________________ दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थों में दशवकालिक का उल्लेख व वर्णन होने पर भी पं. नाथराम प्रेमी ने लिखा है कि पारातीय प्राचार्य कृत दशवकालिक आज उपलब्ध नहीं है और जो उपलब्ध है वह प्रमाण रूप नहीं है।५ दिगम्बर परम्परा में यह सूत्र कब तक मान्य रहा, इसका स्पष्ट संकेत नहीं मिलता। हमारी दृष्टि से जब दोनों परम्पराओं में वस्त्रादि को लेकर प्राग्रह उग्र रूप में हुआ, तब दशवकालिक में वस्त्र का उल्लेख मुनियों के लिए होने से उसे अमान्य किया होगा। नामकरण प्रस्तुत आगम के 'दसवेयालिय'५० (दशवकालिक) और 'दसवेकालिय'५७ ये दो नाम उपलब्ध होते हैं। यह नाम दस और वैकालिक अथवा कालिक इन दो पदों से निर्मित है। सामान्यतः दस शब्द दस अध्ययनों का सूचक है और वैकालिक का सम्बन्ध र चना नि!हण या उपदेश से है। विकाल का अर्थ संध्या है। सामान्य नियम के अनुसार आगम का रचनाकाल पूर्वाह ण माना जाता है किन्तु प्राचार्य शय्यम्भव ने मनक की अल्पायु को देखकर अपराहण में ही इसकी रचना या नि' हण प्रारम्भ किया और उसे विकाल में पूर्ण किया। ऐसी भी मान्यता है कि दस विकालों या संध्याओं में रचना-नि!हण या उपदेश किया गया, इस कारण यह आगम 'दशवकालिक' कहा जाने लगा। स्वाध्याय का काल दिन और रात में प्रथम और अन्तिम प्रहर है। प्रस्तुत आगम बिना काल (विकाल) में भी पढ़ा जा सकता है। अतः इसका नाम दशवकालिक रखा गया है। अथवा प्राचार्य शय्यम्भव चतुर्दशपूर्वी थे, उन्होंने काल को लक्ष्य कर इसका निर्माण किया, इसलिए इसका नाम दशवकालिक रखा गया है। एक कारण यह भी हो सकता है कि इसका दसवां अध्ययन वैतालिक नाम के वृत्त में रचा हुया है, अत: इसका नाम दसवेतालियं भी संभव है।५८ हम यह लिख चुके हैं कि प्राचार्य शय्यम्भव ने अपने बालपुत्र मनक के लिए दशवकालिक का निर्माण किया / मनक ने दशवकालिक को छह महीने में पढ़ा, श्रत और चारित्र को सम्यक् आराधना कर वह संसार से समाधिपूर्वक आयु पूर्ण कर स्वर्गस्थ हुअा। प्राचार्य शय्यम्भव ने संघ से पूछा- अब इस नियूढ आगम का क्या किया जाय ? संघ ने गहराई से चिन्तन करने के बाद निर्णय किया कि इसे ज्यों का त्यों रखा जाय / यह पागम मनक जैसे अनेक श्रमणों की आराधना का निमित्त बनेगा। इसलिए इसका विच्छेद न किया जाय। प्रस्तुत निर्णय के पश्चात् दशवकालिक का जो वर्तमान रूप है उसे अध्ययनक्रम से संकलित किया गया है। महानिशीथ के अभिमतानुसार पांचवें पारे के अन्त में पूर्ण रूप से अंग साहित्य विच्छिन्न हो जायेगा तब दुप्पसह मुनि दशवकालिक के आधार पर संयम की साधना करेंगे और अपने जीवन को पवित्र बनायेंगे / 6. चलिका के रचयिता कौन ? दस अध्ययनों और दो चूलिकानों में यह प्रागम विभक्त है। चूलिका का अर्थ शिखा या चोटी है / छोटी चूला (चूडा) को चूलिका कहा गया है, यह चूलिका का सामान्य शब्दार्थ है। साहित्यिक दृष्टि से चूलिका 55. जैन साहित्य और इतिहास पृ. 53, सन् 1942, हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकार कार्यालय बम्बई 56. (क) नन्दीसूत्र 46 (ख) दशवकालिक नियुक्ति, गाथा 6 57. दशवकालिक नियुक्ति, गाथा 1, 7, 12, 14, 15 58. दशवकालिक : अगस्त्य सिंह चूणि, पुण्यविजय जी म. द्वारा सम्पादित 59. 'विचारणा संघ' इति शय्यम्भवेनाल्पायुषमेनमवेत्य मयेदं शास्त्रं नि' द किमत्र युक्तमिति निवेदिते विचारणा संघे-काल ह्रासदोषात् प्रभूतसत्वानामिदमेवोपकारकमतस्तिष्ठत्वेतदित्येवंभूता स्थापना / दशवकालिक हारिभद्रीया वृत्ति, पत्र 284 60. महानिशीथ अध्ययन 5 दुःषमाकर क प्रकरण / [ 27 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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