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________________ पंचम अध्ययन : पिण्डषणा) [187 अकल्पनीय होता है। इसलिए भिक्षु देती हुई (उस स्त्री) को निषेध कर दे कि मेरे लिए इस प्रकार का आहार ग्रहण करने योग्य नहीं है / / 80-81 // [164-165] यदि अशन, पानक तथा खाद्य और स्वाद्य, अग्नि पर रखा हुमा हो और उस (अग्नि) को उज्ज्वलित (सुलगा) कर दे, तो वह भक्त-पान संयतों के लिए अकल्पनीय होता है / अतः मुनि देती हुई (उस महिला को) निषेध कर दे कि मैं इस प्रकार के आहार को ग्रहण नहीं करता / / 82-83 // [166-167] यदि प्रशन, पानक तथा खाद्य और स्वाद्य, अग्नि पर रखा हुआ हो तथा उसे (अग्नि को) प्रज्ज्वलित (बार-बार ईंधन डाल कर अधिक प्राग भड़का) कर (साधु को) देने लगे, तो वह भक्त-पान संयमीजनों के लिए अकल्पनीय होता है। इसलिए साधु देती हुई उस महिला को निषेध कर दे कि ऐसा आहार मेरे लिए ग्राह्य नहीं है / / 84-85 / / [168-166] यदि प्रशन, पानक तथा खाद्य और स्वाद्य, अग्नि पर रखा हुआ हो और उस (अग्नि) को बुझा कर (ग्राहार) देने लगे, तो वह भक्त-पान संयमियों के लिए अकल्पनीय होता है / इसलिए भिक्षु, देती हुई उस महिला को निषेध कर दे कि इस प्रकार का आहार मैं नहीं ले सकता / / 86-87 // [170-171] यदि अशन, पानक तथा खाद्य और स्वाद्य, अग्नि पर रखा हुया हो और उसमें से (बर्तन में से) आहार बाहर निकाल कर देने लगे, तो वह भक्त-पान संयमियों के लिए अकल्पनीय होता है / अत: देती हुई (उस महिला को) साधु निषेध कर दे कि मैं इस प्रकार का आहार ग्रहण नहीं करता // 88-89 // [172-173] यदि अशन, पानक तथा खाद्य और स्वाद्य, अग्नि पर रखा हुआ हो और उसमें (बर्तन में) पानी का छींटा देकर (साधु को) देना चाहे, तो वह भक्त-पान संयमियों के लिए अकल्पनीय (अग्राह्य) होता है / इसलिए देती हुई (उस महिला) को (साधु) निषेध कर दे कि मैं इस प्रकार का आहार ग्रहण नहीं करता / / 60-61 // [174-175] यदि अशन, पानक तथा खाद्य और स्वाद्य, अग्नि पर रखा हुआ हो और उसको (पात्र को) एक ओर टेढ़ा करके (साधु को) देने लगे, तो वह भक्त-पान संयमियों के लिए अकल्पनीय होता है / अतः देती हुई उस महिला को साधु स्पष्ट निषेध कर दे कि मैं ऐसे आहार को ग्रहण नहीं करता / / 92-93 / / [176.177] यदि अशन, पानक तथा खाद्य और स्वाद्य, अग्नि पर रखा हुआ हो और उसे (बर्तन को) उतार कर देने लगे तो, वह भक्त-पान संयमी साधु-साध्वियों के लिए अकल्पनीय होता है / इसलिए मुनि, देती हुई उस नारी को, निषेध कर दे कि मेरे लिए इस प्रकार का आहार ग्रहण करने योग्य नहीं है / / 64-65 / / विवेचन-सचित्त वनस्पति-जल-अग्नि प्रादि से संस्पृष्ट आहार-ग्रहण निषेध-प्रस्तुत 24 सूत्रगाथाओं (154 से 177 तक) में प्रारम्भ को 4 गाथाएँ वनस्पति और सचित्त जल से संस्पृष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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