________________ पंचम अध्ययन : पिण्डषणा] [181 दानार्थ-प्रकृत आदि आहार-ग्रहण का निषेध 144. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा। ___जं जाणेज्ज सुणेज्जा वा दाणट्ठा पगडं इमं / / 62 / / 145. तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं / देतियं पडिआइक्खे न मे कप्पइ तारिसं // 63 // 146. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा। जं जाणेज्ज सुणेज्जा वा पुण्णट्ठा पगडं इमं // 64 // 147. तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं / देतियं पडिआइक्खे न मे कप्पइ तारिसं // 65 / / 148. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा। जं जाणेज्ज सुणेज्जा वा वणिमट्ठा पगडं इमं // 66 / / 149. तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं / देतियं पडिआइवखे, न मे कप्पइ तारिसं // 67 / / ... 150. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा। जं जाणेज्ज सुणेज्जा वा समणट्ठा पगडं इमं / / 68 / / 151. तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं / देंतियं पडिआइक्खे न मे कप्पइ तारिसं / / 69 / / [144-145] यदि मुनि यह जान जाए या सुन ले कि यह अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य दानार्थ तैयार किया गया है, तो वह भक्त-पान संयमियों के लिए अकल्पनीय होता है। (अतः मुनि ऐसा पाहार) देती हुई महिला को निषेध कर दे कि ऐसा आहार मेरे लिए ग्राह्य नहीं है। // 62-63 // [१४६-१४७]-यदि साधु या साध्वी यह जान ले या सुन ले कि यह अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य पुण्यार्थ तैयार किया गया है; तो वह भक्त-पान संयमियों के लिए अकल्प्य होता है / (इसलिए भिक्षु ऐसा आहार) देती हुई उस स्त्री को निषेध कर दे कि इस प्रकार का आहार मेरे लिए ग्राह्य नहीं है। [148-146] ---यदि भिक्षु या भिक्षुणी यह जान ले या सुन ले कि यह अशन, पानक, खाद्य या स्वाद्य वनीपकों (भिखमंगों) के लिए तैयार किया गया है, तो वह भक्त-पान साधुओं के लिए अकल्पनीय होता है, इसलिए भिक्षु देती हुई उस महिला को निषेध कर दे कि ऐसा आहार मेरे लिए अग्राह्य है / : 66-67 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org