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________________ 180] [दशवकालिकसूत्र शंकित और उद्धिन्न दोषयुक्त आहारग्रहणनिषेध 141. जं भवे भत्तपाणं तु कप्पाऽकप्पमि संकियं / देतियं पडिआइखे न मे कप्पइ तारिसं // 59 // 142. वगवारएण पिहियं नीसाए पीढएण वा। लोढेण वा वि लेवेण सिलेसेण व केणइ // 60 // 143. तं च+ उभिदिउं देज्जा, समणढाए व दायए। देतियं पडिआइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं // 61 // [१४१]-जिस भक्त-पान के कल्पनीय या अकल्पनीय होने में शंका हो, उसे देती हुई महिला को मुनि निषेध कर दे कि मेरे लिए इस प्रकार का पाहार कल्पनीय (ग्राह्य) नहीं है / / 59 / / [142-143] पानी के घड़े से, पत्थर की चक्की (पेषणी) से, पीठ (चौकी) से, शिलापुत्र (लोढे) से, मिट्टी आदि के लेप से, अथवा लाख आदि श्लेषद्रव्यों से, अथवा किसी अन्य द्रव्य से पिहित (लँके, लीपे या मू दे हुए) बर्तन का श्रमण के लिए मुंह खोल कर आहार देती हुई महिला को मुनि निषेध कर दे कि मेरे लिए यह पाहार ग्रहण करने योग्य नहीं है / / 60.61 / / विवेचन-शंकित दोष-आहार शुद्ध (सूझता) होने पर भी कल्पनीय (एषणीय, ग्राह्य या दोषरहित) अथवा अकल्पनीय के विषय में साधु शंकायुक्त हो तो उक्त शंका का निर्णय किये बिना ही उसे ले लेना शंकित दोष है। यह एषणा का प्रथम दोष है। अपनी ओर से आत्मसाक्षी से पूरी गवेषणा (जांचपडताल) कर लेने के बाद लिया हुआ वह आहार यदि अशुद्ध हो तो भी वह कर्मबन्ध का हेतु नहीं होता / 62 उद्भिन्न दोष-किसी वस्तु से ढंके हुए या लेप किये हुए वर्तन का मुह खोल कर दिया हुआ आहार उद्भिन्न दोषयुक्त होता है। यह उद्गम का १२वा दोष है। उद्भिन्न दो प्रकार का है--- पिहित उद्भिन्न और कपाट-उद्भिन्न / चपड़ी आदि से बंद किये हुए बर्तन का मुह खोलना पिहित उद्भिन्न है, तथा बंद किवाड़ को खोलना कपाट-उद्भिन्न है। पिधान (ढक्कन) सचित्त भी होता है, अचित्त भी / पत्ते, पानी से भरे घड़े प्रादि का ढक्कन सचित्त है, पत्थर की शिला या चक्की का ढक्कन अचित्त होते हुए भी भारी-भरकम होता है, उसे हटाने या खोलने में हिंसा, अयतना और दाता को कष्ट होने की संभावना है। कपाट चुलिये वाला हो तो उसे खोलने में जीववध की संभावना है / अतः दोनों प्रकार की भिक्षा लेने का निषेध है। 3 पाठान्तर- + उभिदिया। 62. (क) पिण्डनियुक्ति गा. 529-530 (ख) देसवेयालियं (मुनि नथमल जी) पृ. 234 (ग) दशव. (प्राचार्य श्री आत्माराम जी म.) पृ. 189 63. (क) पिण्डनियुक्ति गा. 347 (ख) आचार-चूला 1190-91 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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