________________ नियूं हण किया / 35 छह मास व्यतीत हुए और मुनि मनक का स्वर्गवास हो गया। शय्यम्भव श्रुतघर तो ये पर वीतराग नहीं थे। पुत्रस्नेह उभर आया और उनकी आँखें मनक के मोह से गीली हो गई। यशोभद्र प्रति मुनियों ने खिन्नता का कारण पूछा / 36 आचार्य ने बताया कि मनक मेरा संसारपक्षी पुत्र था, उसके मोह ने मुझे कुछ विह्वान किया है। यह बात यदि पहले ज्ञात हो जाती तो प्राचार्य पुत्र समझ कर उससे कोई भी वैय्यावृत्य नहीं करवाता, वह सेवाधर्म के महान् लाभ से वंचित हो जाता। इसीलिए मैंने यह रहस्य प्रकट नहीं किया था। प्राचार्य शय्यम्भव 28 वर्ष की अवस्था में श्रमण बने। अतः दशवकालिक का रचनाकाल वीर-निर्वाण संवत 72 के पास-पास है। उस समय प्राचार्य प्रभवस्वामी विद्यमान थे,३७ क्योंकि प्राचार्य प्रभव का स्वर्गवास वीर निर्वाग 75 में होता है / 36 डॉ. विन्टरनिज ने वीरनिगम के 98 वर्ष पश्वात् दशवकालिक का रचनाकाल माना है,38 प्रो. एम. वी. पटवर्द्धन का भी यही अभिमत है / . किन्तु जब हम पदावलियों का अध्ययन करते हैं तो उनका यह कालनिर्णय सही प्रतीत नहीं होता क्योंकि प्राचार्य शय्यम्भव वीरनिर्वाण संवत् 64 में दीक्षा ग्रहण करते हैं। उनके द्वारा रचित या नियू हण की हुई कृति का रचनाकाल वीरनिर्वाण संवत् 98 किस प्रकार हो सकता है ? कपोंकि संवत् 64 में उनकी दीक्षा हुई और उनके पाठ वर्ष पश्चात उनके पुत्र मनक की दीक्षा हुई।* इसलिए वीरनिर्वाण 72 में दशवकालिक की रचना होना ऐतिहासिक दृष्टि से उपयुक्त प्रतीत होता है। यहाँ पर जो उन्हें प्राचार्य लिखा है, वह द्रव्यनिक्षेप को दृष्टि से है। दशवकालिक एक नियू हण-रचना है __ रचना के दो प्रकार हैं--एक स्वतन्त्र और दूसरा नि' हण / दशवकालिक स्वतन्त्र कृति नहीं है अपितु नि!हण-कृति है। दशवकालिकनियुक्ति के अनुसार प्राचार्य शय्यम्भव ने विभिन्न पूों से इसका नियंहण किया / चतुर्थ अध्ययन प्रात्म-प्रवाद पूर्व से, पाँचवां अध्ययन कर्म-प्रवाद पूर्व से, सातवाँ अध्ययन-सत्य-प्रवाद पूर्व से और अवशेष सभी अध्ययन प्रत्याख्यान पूर्व की तृतीय वस्तु से उद्धत किए गए हैं। 42 35. (क) सिद्वान्तसारमुद्ध त्याचार्य: शय्यम्भवस्तदा। दशवकालिकं नाम श्रुतस्कन्धमुदाह्ररत् // 8 // (ख) दशवकालिक हारिभद्रीयावृत्ति, पत्र 12 --परिशिष्ट पर्व, सर्ग 5 36. आणंद-अंसुपायं कासी सिज्जंभवा तहि थेरा। जसभहस्स य पुच्छा कहणा अविद्यालणा संघे / / --दशव. नियुक्ति 371 37. जैनधर्म का मौलिक इतिहास, द्वितीय भाग, पृष्ठ 314 38. जैनधर्म के प्रभावक आचार्य पृष्ठ 51 39. A History of Indian Literature, Vol. II, Page 47, F. N. 1 40. The Dasavaikalika Sutra : A Study, Page 9 41. जैनधर्म का मौलिक इतिहास, पृष्ठ 314 * दशवकालिक हारिभद्रीया वृत्ति, पत्र-११-१२ आयप्पवायपुवा निज्जूढा होइ धम्मानती। कम्मप्पवायपुत्रा पिंडस्स उ एसणा तिविहा / / सच्चप्पवायपुवा निज्जूढा होइ वक्कसुद्धी उ / अवसेसा निज्जूढा नवमस्स उ तइयवत्थूप्रो / / --दशवकालिक नियुक्ति, गाथा 16-17 [24] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org