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________________ 158] दिशवकालिकसूत्र एकान्त : दो अर्थ-(१) मोक्षमार्ग अथवा (2) विविक्तशय्यासेवी / " भिक्षाचर्या के समय शरीरादिचेष्टा-विवेक 94. साणं सूइयं गावि दित्तं गोणं हयं गयं / संडिकभं कलहं जुद्ध दूरओ परिवज्जए // 12 // 95. अणुन्नए नावणए अप्पहिछे प्रणाउले। इंदियाई जहामार्ग, दमइत्ता मुणी चरे // 13 // 66. दवदवस्स न गच्छेज्जा, भासमाणो य गोयरे / हसंतो नाभिगच्छेज्जा, कुलं उच्चावयं सया // 14 // 97. आलोयं थिग्गलं दारं संधि दगभवणाणि य। चरंतो न विणिज्झाए, संकट्ठाणं विवज्जए // 15 // 98. रनो गिहवईणं च रहस्सारक्खियाण य / संकिलेसकरं ठाणं दूरओ परिवज्जए // 16 // [14] (भाग में) कुत्ता (श्वान), नवप्रसूता (नयी ब्याई हुई) गाय, उन्मत्त (दर्पित) बैल, अश्व और गज (हाथी) तथा बालकों का कोड़ास्थान, कलह और युद्ध (का स्थान मिले तो उस) को दूर से ही छोड़ (टाल) कर (गमन करे) // 12 // [95] मुनि न उन्नत हो (ऊँचा मुंह) कर, न अवनत हो (नीचा झुक) कर, न हर्षित होकर, न प्राकुल होकर, (किन्तु) इन्द्रियों के अपने-अपने भाग---विषय के अनुसार दमन करके चले / / 13 / / [96] उच्च-नीच कुल में गोचरी के लिए मुनि सदैव जल्दी-जल्दी (दबादब) न चले तथा हँसी-मज़ाक करता हुअा और बोलता हुआ न चले // 14 // [17] (गोचरी के लिए) जाता हुआ (मुनि) झरोखा (मालोक,) फिर से चिना हुआ (थिग्गल) द्वार, संधि (चोर आदि के द्वारा लगाई हुई सेंध) तथा जलगृह (परीडा) को न देखे (तथा) शंका उत्पन्न करने वाले अन्य स्थानों को भी छोड़ दे / / 14 / / [98] राजा के, गृहपतियों के तथा प्रारक्षिकों के रहस्य (गुप्त मंत्रणा करने के उस स्थान को (या अन्तःपुर को) दूर से ही छोड़ दे, जहाँ जाने से संक्लेश पैदा हो // 16 // विवेचन-भिक्षाटन के मार्ग में वजित स्थान-भिक्षाचर्या के लिए जाते समय मुनि को ऐसे स्थानों को दूर से ही टाल देना चाहिए, जिनके निकट जाने या जिन्हें ताक-ताककर देखने से उसके प्रति चोर, गुप्तचर, पारदारिक (लम्पट) या शिशुहरणकर्ता आदि होने की आशंका हो। ऐसे स्थानों 21. (क) एकान्तं मोक्षम् / —हा. टी,, प. 166 (ख) एगंतो णिरपवातो मोक्खगामी मग्गो--णाणादि। -अगस्त्य चणि, पृ.१०२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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