________________ पंचमं अज्झयणं : पिंडेसणा पंचम अध्ययन : पिण्डषणा गोचरो (भिक्षाचर्या) के लिए गमनविधि 83. संपत्ते भिक्खकालम्मि, असंभंतो अमुच्छिनो। इमेण कमजोगेण, भत्तपाणं गवेसए // 1 // 84. से गामे वा नगरे वा, गोयरग्गगओ मुणी। चरे मंदमणु विग्गो अन्वक्खितण चेयसा / / 2 / / 85. पुरओ जुगमायाए, पेहमाणो महि चरे। वज्जतो+ बोयहरियाई, पाणे य दगमट्टियं // 3 // 86. प्रोवायं विसमं खाणु विज्जलं परिवज्जए।। संकमेण न गच्छेज्जा, विज्जमाणे परक्कमे // 4 // 87. पवडते व से तत्थ, पक्खलंते x व संजए। हिसेज्ज पाणभूयाई, तसे अदुव थावरे // 5 // 88. तम्हा तेण न गच्छेज्जा, संजए सुसमाहिए।। सइ अन्नेण मग्गेण जयमेव परक्कमे // 6 // [चलं कट्ठ सिलं वावि, इट्टालं वा वि संकमो। ण तेण भिक्खू गच्छेज्जा, दिट्ठो तत्थ असंजमो // ] 89. इंगालं छारियं रासि, तुसरासि च गोमयं / / ससरयखेंहि पाहि संजओ तं नऽइक्कमे // 7 // 90. न चरेज्ज वासे वासंते, महियाए व पडतिए।। महावाए व वायंते, तिरिच्छसंपाइमेसु वा // 8 // पाठान्तर-+- वज्जेंतो। x पक्खुलते / न अक्कमे, णऽइक्कमे / प्रक्षिप्त---[ ] कोष्ठकान्तर्गत गाथा अगस्त्यणि में अधिक मिलती है, किन्तु इसी गाथा का बक्तव्य इसी अध्ययन की 178-179 सूत्रगाथा में मिलता है। इसलिए, यह गाथा प्रक्षिप्त मालम होती है। -सं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org