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________________ 128] [दशवकालिकसूत्र नियमित समय पर करे, प्रकामनिद्रालु न हो, शयनकाल में करवट बदलते, हाथ-पैर सिकोड़तेपसारते समय सावधानी रखे, पूजणी से प्रमार्जन करके ही अंगसंचालन करे, सोने से पूर्व संस्तारक का प्रमार्जन कर ले, तथा सागारी अनशन कर ले, संथारा पौरुषी का पाठ करके सोए, मच्छर, खटमल आदि का स्पर्श होने पर पूजणी से उसे धीरे से एक अोर कर दे / दुःस्वप्न न पाए इसको जागति रखे, स्वप्न में घबराए या बड़बड़ाए नहीं। इन या ऐसे हो शास्त्रीय नियमों का पालन करना शयनविषयक यतना है, और इनका उल्लंघन करना एतविषयक अयतना है। भोजनविषयकयतना-अयतना-गवेषणा, ग्रहणषणा एवं परिभोगषणा से सम्बन्धित दोषों का वर्जन करके आहार ग्रहण एवं सेवन करे, जैसे-प्राधाकर्म,प्रौद्देशिक, क्रीत आदि दोषयुक्त आहार न ले, धात्रीकर्म, दुतिकर्म, दैन्य आदि करके आहार न ले, आहार सेवन करते समय पांच मण्डल दोषों का वर्जन करे, सचित्त, अर्द्ध पक्व, या सचित्त पर रखे हुए या सचित्त पानी, अग्नि, वनस्पति आदि से संस्पृष्ट आहार न ले, स्वाद के लिए न खाये, शास्त्रोक्त 6 कारणों से सप्रयोजन आहार करे, हित मितभोजी हो, प्रकामभोजी न हो, निर्दोष पाहार न मिलने पर या थोड़ा मिलने पर सन्तोष करे, 6 कारणों से ग्राहार का त्याग कर, सविभाग करक सन्तुष्ट होकर शान्तिपूर्वक ग्राहार करे / न छोड़े, न संग्रह करे। गृहस्थ के घर में (अकारण) आहार न करे, न गृहस्थ के बर्तन में भोजन करे, इन और ऐसे ही अन्य शास्त्रीय नियमों का पालन करना भोजनविषयक यतना है। इसके विपरीत, इन नियमों का अतिक्रमण करना एतद्विषयक अयतना है। भाषासम्बन्धी यतना-अयतना–साधु-साध्वी भाषासमिति से सम्बन्धित नियमों का पालन करें / 'सुवाक्यशुद्धि' नामक अध्ययन में बताये भाषासम्बन्धी विवेक का पालन करे, सत्यभाषा एवं व्यवहारभाषा बोले, असत्य एवं मिश्रभाषा न बोले; कर्कश, कठोर, निश्चयकारी, छेदन-भेदनकारी, हिंसाकारी, सावध, पापकारी वचन न बोले, गाली न दे, अपशब्द न बोले, चुगली न खाए, न परनिन्दा में प्रवृत्त हो, जिससे दूसरा कुपित हो, दूसरे को आघात पहुंचे ऐसी मर्मस्पर्शी या तोपघाती भाषा न बोले, न सावधानुमोदिनी भाषा बोले, जिस विषय में न जानता हो उस विषय में निश्चित बात न कहे, वर, फूट, मनोमालिन्य, द्वेष, कलह एवं संघर्ष पैदा करने वाली भाषा न बोले, सांसारिक लोगों के विवाहादिविषयक प्रपंच में न पड़े, न ही ज्योतिष निमित्त या भविष्य के बारे में कथन करे / इन और ऐसे ही अन्य भाषाविषयक नियमों का पालन करना यतना है और इनका उल्लंघन करना अयतना है / 8 97. (क) दशवं. (आ. मणिमंजषा टोका) भा. 1, पृ. 298 (ख) आसमाणो नाम उवट्टियो, सो तत्थ सरीराकुचणादीणि करेइ, हत्यपाए विच्छुभइ तो सो उवरोधे वट्टइ / -जि. च., पृ. 159 / (ग) अजयंति माउंटेमाणो य ण पडिलेहइ ण पमज्जइ, सब्बराइं सुब्बइ, दिवसायो वि सुयई, पगामं निगाम वा सुवइ / -जि. चू.,पृ. 159 (घ) अयत स्वपन्--असमाहितो दिवा प्रकामशय्यादिना। -हा. टी., पृ. 157 (क) दसवेयालियं (मुनि नथमलजी) पृ. 160 (ख) दशव. (ग्रा. मणि मंजुषा टीका) भा. 1, पृ. 295 (ग) “अजत-सुरुसुरादि काकसियालभुत्त एवमादि।" ---अगस्त्यणि, पृ. 92 (घ) 'अयतं भुजानो-निष्प्रयोजनं प्रणीतं काकशृगालभक्षितादिना वा।' -हा. टी., प. 157 (ङ) 'अयतं भाषमाणो-गृहस्थभाषया निष्ठुरमन्तरभाषादिना वा।' वही, पत्र 157 अजयं गारत्थियभाहि भासइ ढढरेण वेरत्तियासु एवमादिसू / / -जि. चूणि, पृ. 159 18. (क) दसरा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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