SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थ अध्ययन : षड्जीवनिका] [127 गमनविषयक यतना-अयतना-साधु-साध्वियों के लिए गमनागमनविषयक कुछ नियम ये हैंवह षट्कायिक जीवों को देखता-भालता उपयोगपूर्वक चले, धीरे-धीरे युगप्रमाण (साढ़े तीन हाथ) भूमि को दिन में देख कर तथा रात्रि में रजोहरण से प्रमार्जन करता हुआ चले; बीज, घास, जल, पृथ्वी, तथा चींटी, कीट प्रादि स जीवों की यथाशक्य रक्षा करता हुआ, उन्हें बचाता हुआ चले / सरजस्क पैरों से राख, अंगारे, गोबर आदि पर न चले, जिस समय वर्षा हो रही हो, धुंअर पड़ रही हो, उस समय न चले, जोर से अाँधी चल रही हो, मार्ग अन्धकाराच्छन्न हो गया हो, या कीट, पतंगे आदि सम्पातिम प्राणी उड़ रहे हों, उस समय न चले / वह हिलते हुए तख्ते, पत्थर या ईंट आदि पर पैर रख कर कीचड़ या जल को पार न करे, बिना प्रयोजन इधर-उधर न भटके, साधुचर्याविषयक प्रयोजन होने पर ही उपाश्रय से बाहर निकले, रात्रि में गमनागमन या विहार न करे, चलते समय पर या नीचे देखता हुअा, बातें करता हुआ, हँसता या दौड़ता हुआ, दूसरे के कन्धे से कन्धा भिड़ाता हया, धक्कामुक्की करता हुआ न चले। यह गमनविषयक यतना है / इसके विपरीत गमनसम्बन्धी इन र्यासमिति के अन्य नियमों तथा शास्त्रीय प्राज्ञाओं का उल्लंघन करना गमनविषयक अयतना है 18 खड़े होने सम्बन्धी यतना-अयतना--शास्त्र में ईर्यासमिति के अन्तर्गत ही खड़े होने के कुछ नियम साधुवर्ग के लिए बताए हैं-सचित्त भूमि, हरियाली (हरी घास दूब प्रादि), वृक्ष, जल, अग्नि, उत्तिंग, पनक (काई) या किसी त्रस जीव पर पैर रख कर खड़ा न हो, पूर्ण संयम से खड़ा रहे, खड़ा-खड़ा इधर-उधर किसी के मकान या खिड़कियों तथा किसी स्त्री, अथवा खेल-तमाशे आदि की ओर दृष्टिपात न करे, खड़े-खड़े हाथ-पैर आदि को असमाधिभाव से न हिलाए-डुलाए, खडे-खडे अाँखें मटकाना, अंगलियों से या हाथ से किसी की अोर संकेत करना आदि चेष्टाएँ न करे। खड़े होने सम्बन्धी इन या ऐसे ही अन्य शास्त्रीय नियमों का पालन करना तथा विवेकपूर्वक योग्य स्थान में खड़ा होना यतना है। इसके विपरीत खड़े होने सम्बन्धी इन या ऐसे ही अन्य नियमों का उल्लंघन करना अयतना है / बैठने सम्बन्धी यतना-प्रयतना-साधु के लिए बैठने के कुछ नियम हैं, जैसे कि–सचित्त भूमि, बर्फ, ग्रासन या किसी त्रस जीव पर या त्रस जोवाश्रित स्थान या काष्ठ आदि पर न बैठे, जगह का या तख्त आदि का प्रमार्जन-प्रतिलेखन किये बिना न बैठे, दरी, गद्दे, पलंग, खाट या स्प्रिगदार कुर्सी आदि पर न बैठे, गहस्थ के घर (अकारण) या दो घरों के बीच की गली में, रास्ते के बीच में न बैठे; अकेली स्त्री (साध्वी के लिए अकेले पुरुष) के पास न बैठे, व्यर्थ सावद्य बातें करने के लिए न बैठे, उपयोगपूर्वक बैठे, जहाँ बैठने से अप्रीति उत्पन्न होती हो, ऐसे स्थान में न बैठे। बैठे-बैठे हाथ-पैर ग्रादि को अनुपयोगपूर्वक पसारना, सिकोड़ना, हिलाना आदि चेष्टाएँ न करे ; बैठने के इन या ऐसे ही अन्य शास्त्रीय नियमों का पालन करना यतना है और इनका उल्लंघन करना एतदविषयक अयतना है। शयन-विषयक यतना-अयतना-अप्रतिलेखित तथा अप्रमार्जित भूमि, तख्त, शय्या, शिलापट्ट, घास, चटाई आदि पर न सोये। सारी रात न सोये, न ही अकारण दिन में सोये ; सोना-जागना 96. (क) 'अजयं नाम अणुबएसेणं, चरमाणो नाम मच्छमाणो।' –जिनदासचूणि, पृ. 158 (ख) अयत-अनुपदेशेनासूत्राज्ञया इति क्रिया विशेषणमेतत् ।....."अयतमेव चरन ईर्यासमितिमल्लंघ्य। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy