________________ 126] [दशवकालिकसूत्र [55] अयतनापूर्वक गमन करने वाला साधु (या साध्वी) प्राणों (त्रस) और भूतों (स्थावर जीवों) की हिंसा करता है, (उससे) वह (ज्ञानावरणीय आदि) पापकर्म का बन्ध करता है / वह उसके लिए कटु फल वाला होता है // 24 // (56] अयतनापूर्वक खड़ा होने वाला साधु (या साध्वी) प्राणों और भूतों को हिंसा करता है, (उससे) पापकर्मका बन्ध होता है, जो उसके लिए कटु फल वाला होता है / / 2 / / [57] अयतनापूर्वक बैठने वाला साधक (द्वीन्द्रियादि) त्रस और स्थावर जीवों की हिंसा करता है, (उससे उसके) पापकर्म का बन्ध होता है, जो उसके लिए कटु फल वाला होता है / / 26 / / [58] अयतना से सोने वाला अस और स्थावर जीवों की हिंसा करता है, (उससे) वह पापकर्म का बन्ध करता है, जो उसके लिए कटुक फल-प्रदायक होता है / / 27 // [56] प्रयतना से भोजन करने वाला व्यक्ति स एवं स्थावर जीवों को हिंसा करता है, (जिससे) वह पापकर्म का बन्ध्र करता है, जो उसके लिए कटु फल देने वाला होता है / / 28 / / [60] यतनारहित बोलने वाला त्रस प्रोर स्थावर जोवों को हिंसा करता है / (उससे उसके) पापकर्म का बन्ध होता है, जो उसके लिए कटु फल वाला होता है / / 29 / / [61 प्र.] (साधु या साध्वी) कैसे चले ? कैसे खड़ा हो ? कैसे बैठे? कैसे सोए ? कैसे खाए और कैसे बोले ?, जिससे कि पापकर्म का बन्ध न हो ? // 30 // [62 उ. (साधु या साध्वी) यतनापूर्वक चले, यतनापूर्वक खड़ा हो, यतनापूर्वक बैठे, यतनापूर्वक सोए, यतनापूर्वक खाए प्रोर बोले, (तो वह) पापकर्म का बन्ध नहीं करता // 31 // [63] जो सर्वभूतात्मभूत (सर्वजोवों को प्रात्मतुल्य मानता) है, जो सब जीवों को सम्यग्दृष्टि से देखता है, तथा जो प्रास्र का निरोध कर चुका है पोर दान्त है, उसके पापकर्म का बन्ध नहीं होता / / 32 // विवेचन--अयतना और यतना का परिणाम-प्रस्तुत 6 सूत्रों (55 से 62 तक) में से प्रारम्भ के 6 सूत्रों में अयतना से गमन करने, खड़ा होने, सोने, खाने और बोलने का परिणाम पाप (अशुभ) कर्मों का बन्ध, तथा कटुफल प्रदायक बताया गया है। तत्पश्चात् 7 वी गाथा में पापकर्मवन्ध न होने के उपाय को जिज्ञासा शिष्य द्वारा प्रकट को गई है, जिसका समाधान 8 वी गाथा में बहुत ही सुन्दर शब्दों में प्रस्तुत किया गया है और उसो के सन्दर्भ में : वों गाथा में पापकर्म बन्ध से रहित होने को चार अर्हताओं का निरूपण किया गया है। अयतना-यतना क्या है ? -प्रयतना अोर यतना ये दोनों शास्त्रीय पारिभाषिक शब्द हैं। अयतना का अर्थ है उपयोगशून्यता, असावधानो, अविवेक, अजागृति, अथवा प्रमाद (गफलत)। इसके विपरीत यतना का अर्थ उपयुक्तता, सावधानो, विवेक, जागृति अथवा अप्रमाद है / स्पष्ट शब्दों में कहें तो प्रत्येक योग्य क्रिया के लिए जिस समिति अथवा शास्त्रीय नियमों तथा आज्ञाओं का साधुसाध्वी के लिए विधान है, उनका उल्लंघन करना तद्विषयक अयतना है और इसके विपरीत उनके अनुसार चर्या करना यतना है / 5 95. (क) दशवे (संनबालजी), पृ. (ख) दशवै. (प्राचार्य श्री प्रात्मा.), 5.111 (ग) दशवेयालियं (मुन्न नथमलजी), पृ. 159 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org