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________________ 100] [दशवकालिकसूत्र तात्पर्य यह है कि 'तस्स भंते "वोसिरामि' इत्यादि शब्दों से, शिष्य दण्डसमारम्भ न करने की प्रतिज्ञा ग्रहण करने के बाद जो दृढीकरण की भावना करता है, वह अभिव्यक्त होती है।४७ फलितार्थ-साधक महाव्रत (चारित्र) उपस्थापन के योग्य तभी होता है, जब वह षड्जीवनिकाय को पहले सम्यक् प्रकार से जान ले, उनके अस्तित्व के विषय में उसे दृढ़ श्रद्धा-विश्वास हो जाए और उसकी प्रतीति के लिए वह गुरु द्वारा उपदिष्ट षड्जीव-निकायों के प्रति दण्डसमारम्भ का मन-वचन-काया से तथा कृत-कारित-अनुमोदितरूप से विधिवत् त्याग कर दे।४८ शिष्य द्वारा सरात्रिभोजनविरमण पंचमहावतों का स्वीकार [42] पढमे भंते ! महत्वए पाणाइवायाओ वेरमणं / सव्वं भंते ! पाणाइवायं पच्चक्खामि, से सुहुमं वा, बायरं वा, तसं वा, थावरं वा, x नेव सयं पाणे अइवाएज्जा, नेवऽनहिं पाणे अइवायावेज्जा, पाणे अइवायंते वि अन्न न समणुजाणेज्जा। जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं, मणेणं वायाए काएणं, न करेमि, न कारवेमि, करेंत पि अन्नं न समणुजाणामि / तस्स भंते ! पडिक्कमामि निदामि गरहामि अप्पाणं वोसिरामि / पढमे भंते ! महत्वए उवद्धिमोमि सव्वामओपाणाइवायाप्रो वेरमणं // 11 // [43] अहावरे दोच्चे भंते ! महव्वए मुसावायाओ वेरमणं / सव्वं भंते! मुसावायं पच्चक्खामि, से कोहा वा, लोहा वा, भया वा, हासा वा / * नेव सयं मुसं वएज्जा, नेवऽन्न हि मुसं वायावेज्जा, मुसं वयंते वि अन्न न समणुजाणेज्जा / जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं, मणेणं वायाए काएणं, न करेमि, न कारवेमि, करेंतं पि अन्नं न समणुजाणामि / तस्स भंते ! पडिकमामि निदामि गरहामि अप्पाणं वोसिरामि। दोच्चे भंते ! महब्वए उवटिओमि सव्वानो मुसावायाओ वेरमणं // 12 // [44] अहावरे तच्चे भंते ! महब्बए प्रदिन्नादाणाप्रो वेरमणं। सव्वं भंते ! अदिन्नादाणं पच्चक्खामि / से गामे वा नगरे वा, रन्ने वा, अप्पं वा, बहुं वा, अणुवा, थूल वा, चित्तमंत वा, प्रचित्तमंतं वा / / नेव सयं अदिन्नं गेण्हेज्जा, नेवऽन्नेहि अदिन्नं गेण्हावेज्जा, अदिन गेण्हते वि अन्ने 47. दशबै. (मूलपाठ टिप्पणयुक्त), पृ. 9 48. पढियाए सत्थपरिणाए दसकालिए छज्जीवणिकाए वा कहियाए अत्थयो अभिगयाए संमं परिक्खिऊण-परिहरइ छज्जीवणियाए मण बयणकाएहिं कय-कारावियाणुमइभेदेण, तमो ठाविज्जइ।। --हारि. टीका, पन 145 x अधिकपाठ-'से त पाणातिवाते चतुविहे, तं.-दव्वतो, खेत्ततो, कालतो भावतो / दव्वतो-छसु जीवनिकाएसु, सेत्ततो-सवलोगे, कालतो-दिया वा राम्रो वा; भावतो-रागेण वा दोसेण वा।..." पाठान्तर--करेंतंपि' के बदले 'करंत पि' पाठान्तर भी मिलता है। "से य मुसादाते चउम्विहे, तं.-दव्वतो 4 / दवतो सम्वदन्वेस्, खेत्ततो-लोमे वा अलोगे वा, कालतो-दिया वा रातो वा, भावतो-कोहेण वा, लोहेण वा, भतेण वा, हासेण वा।" "से त अदिण्णादाणे चतुब्बिहे पण्णत्ते, तं." दवतो 4 / दव्वतो-अप्पं वा, बहुं वा, अणुवा, थूलं वा, चित्त मंतं वा अचित्तमंतं वा / खेत्ततो-गामे वा, नगरे वा, अरण्णे वा, कालतो-दिया वा, रातो वा; भावतोअप्पग्धे वा महग्धे वा।.......' --अगस्त्य. चूणि * + Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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