SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीय अध्ययन : क्षुल्लिकाचार-कथा] [55 भक्तकथा, राज्यकथा, तथा मोहकथा, विप्रलापकथा और मृदुकारुणिक कथा आदि विकथानों से दूर रहते हैं। आगे की गाथाओं में बताए गए कार्य सावध, प्रारम्भजनक और हिंसाबहुल हैं, निर्ग्रन्थ संयमी के जीवन से विपरीत हैं, गृहस्थों द्वारा आचरित हैं। भूतकाल में निर्ग्रन्थ महर्षियों ने कभी उनका आचरण नहीं किया। इन सब कारणों से मुक्ति की कामना से उत्कट साधना में प्रवृत्त निर्ग्रन्थों के लिए ये अनाचीर्ण हैं / अनाचीों के नाम 18. उद्देसियं 1 कोयगडं 2 नियाग 3 अभिहडाणि 4 य / राइभत्ते 5, सिणाणे 6 य, गंधमल्ले 7-8 य वीयणे 9 // 2 // 19. सन्निही 10 गिहिमत्ते 11 य रायपिडे किमिच्छए 12 / * संबाहणा 13, दंतपहोयणा 14 य, संपुच्छणा 15 देहपलोयणा 16 य // 3 // 20. अट्ठावए 17 व नाली य 18 छत्तस्स य धारणढाए 19 / तेगिच्छं 20 पाहणापाए 21, समारंभं च जोइणो 22 // 4 // 21. सेज्जायरपिंडं च 23, आसंदी 24 पलियंकए 25 / / गिहतरनिसेज्जा य 26, गायस्सुब्बट्टणाणि 27 य // 5 // 22. गिहिणो वेयावडियं 28, जा य आजीववत्तिया 26 / तत्तानिन्वुडभोइत्तं 30, आउरस्सरणाणि 31 य // 6 // 23. मूलए 32, सिंगबेरे य 33, उच्छृखंडे अणिम्वुडे 34 / कंदे 35 मूले 36 सच्चित्ते फले 37 बीए य आमए 38 // 7 // 24. सोवच्चले 39 सिंधवे लोणे 40 रोमालोणे य आमए 41 / सामुद्दे 42, पंसुखारे 43 य, कालालोणे य आमए 44 // 8 // 25. धूवणेत्ति 45 वमणे 46 य, बत्थीकम्म 47 विरेयणे 48 / अंजणे 49, दंतवणे 50 य, गायभंग 51 विभूसणे 52 // 9 // अर्थ-[१८] 1. प्रौद्देशिक (निर्ग्रन्थ के निमित्त से बनाया गया), 2. क्रीत-कृत-(साधु के निमित्त खरीदा हा) 3. नित्यान (सम्मानपूर्वक निमंत्रित करके नित्य दिया जाने वाला), 4. अभिहत-(निर्ग्रन्थ के लिये सम्मुख लाया गया भोजन) 5. रात्रिभक्त (रात्रिभोजन करना), 7. (क) जि. चू. पृ. 111 (ख) दशव. (प्रा. आत्मा.) पृ. 35 8. तेसि पुत्वनिद्दिष्टाणं बहिडभतर गंथविप्पमुक्काणं आयपरोभयतातीणं एयं नाम जं उबरि एयंमि अज्झयणे भण्णि हि ति, तं पच्चक्खं दरिसेति / –जि. चूणि, पृ. 111 * यहाँ 'रायपिंड' और 'किमिच्छए' दोनों पदों को एक माना गया है। -सं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy