________________ 28] [आवश्यक सूत्र . 33. रात्निक के कुछ कहने पर शैक्ष अपने ग्रासन पर बैठा-बैठा उत्तर दे, यह शैक्ष की तेतीसवीं पाशातना है / विवेचन- नवीन दीक्षित साधु का कर्तव्य है कि वह अपने आचार्य, उपाध्याय और दीक्षापर्याय में ज्येष्ठ साधु का चलते, उठते, बैठते समय उनके द्वारा कुछ पूछने पर, गोचरी करते समय, सदा ही उनके विनय-सम्मान का ध्यान रखे। यदि वह अपने इस कर्तव्य में चूकता है, तो उनकी अाशातना करता है और अपने मोक्ष के साधनों को खंडित करता है। इसी बात को ध्यान में रखकर ये तेतीस पाशातनाएँ कही गई हैं। प्रकृत सूत्र में चार पाशातनाओं का निर्देश कर शेष की यावत् पद से सूचना की गई है / उनका दशाश्रुतस्कंध के अनुसार स्वरूप-निरूपण किया गया है। // तृतीय आवश्यक सम्पन्न / 00 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org