________________ परिशिष्ट आकयक की विधि जीव-जन्तुरहित निरवद्य स्थान का प्रतिलेखन-प्रमार्जन करके आसन बिछावे / फिर उस पर खड़े होकर शासनपति भगवान महावीर स्वामी को एवं अपने वर्तमान गुरु महाराज के पाठ से तीन बार वंदना करके चौवीसस्तव की आज्ञा लेकर चौवीसस्तव करे। चौवीसस्तव में 'इच्छाकारेणं' और 'तस्स उत्तरी के पाठ कह कर काउस्सग्ग करे। काउस्सग्ग में दो 'लोगस्स' का ध्यान करे / 'नमो अरिहंताणं' कह कर 'काउस्सम्ग' पारे / 'काउस्सग्ग' में मन, वचन, काया चलित हुए हों तो, आर्तध्यान, रौद्रध्यान ध्याया हो तो 'तस्स मिच्छा मि दुक्कडं' बोल कर एक 'लोगस्स' प्रकट रूप में बोले / फिर नीचे बैठकर बायाँ घुटना खड़ा रखकर 'नमोत्थुणं' का पाठ दो वार बोले / फिर प्रतिक्रमण करने की आज्ञा ले / 'इच्छामि णं भंते' एक नवकार कह कर पहले आवश्यक की अाज्ञा ले। _पहले आवश्यक में करेमि भंते, इच्छामि ठामि तथा तस्स उत्तरी की पाटी बोलकर काउस्सग्ग करे / काउस्सग्ग में आगमे तिविहे, दंसण-समकित, अतिचार की पाटियां (पांच समिति, तीन गुप्ति, छः काय, पांच महाव्रत, छठा रात्रिभोजन-त्याग व्रत) छोटी संलेखणा, अठारह पापस्थान, इच्छामि ठामि और एक नवकार मंत्र का मन में चिन्तन करे। सब पाटियों में “मच्छमि दुक्कडं" के बदले 'तस्स आलोऊँ' कहे, 'नमो अरिहंताणं' कहकर काउस्सग्ग पारे। चार ध्यान का पाठ बोल कर पहला आवश्यक समाप्त करे / फिर दूसरे प्रावश्यक की आज्ञा ले / दूसरे आवश्यक में एक लोगस्स प्रकट कहे। फिर तीसरे आवश्यक की आज्ञा ले / तीसरे आवश्यक में 'इच्छामि खमासमणो' का पाठ दो बार बोले / जहाँ 'निसीहियाए' शब्द आवे वहाँ दोनों घुटनों को खड़े कर के दोनों हाथ जोड़ कर बैठे और जब 'तित्तीसन्नयराए' शब्द अावे तब खड़े होकर पाठ समाप्त करे / इसी तरह दूसरी बार 'इच्छामि खमासमणो' का पाठ बोले / फिर चौथे आवश्यक की आज्ञा लेवे। चौथे आवश्यक में खड़े होकर आगमे तिविहे, दंसण समकित, अतिचार की पाटियां, छोटी संलेखना, अठारह पापस्थान, इच्छामि ठामि-जिनका काउस्सग्ग में चिंतन किया था, उन्हें यहाँ प्रकट कहे / सभी पाटियों में 'मिच्छा मि दुक्कड' कहे / फिर 'तस्स सव्वस्स' का पाठ कहे। फिर 'श्रमणसूत्र' की आज्ञा लेकर दाहिना घुटना खड़ा करके बैठे, तदनन्तर एक नवकार, करेमि भंते, चत्तारि मंगलं, इच्छामि ठामि, इच्छाकारेणं, आगमे तिविहे, दंसण समकित, कहे / बाद में निद्रादोषनिवृत्ति (पगामसिज्जाए) का, भिक्षादोषनिवृत्ति (गोयरग्गचरियाए) का, स्वाध्याय तथा प्रतिलेखन (चउकालसिज्जाए) का और तेतीस बोल का पाठ कहे / पश्चात् दोनों घुटने खड़े कर, दोनों हाथ जोड़ कर, सिर झुकाकर निग्रंथप्रवचन (नमो चउवीसाए) का पाठ कहे / जहाँ 'अब्भुट्टिोमि' शब्द हो वहाँ खड़ा होकर सर्व पाठ कहना चाहिए। फिर पालथी लगाकर बैठे और बड़ी संलेखना, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org