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________________ 114] [आवश्यकसूत्र दूसरे के द्वारा हो नहीं सकता। ऐसी स्थिति में यदि प्रत्याख्यान का पालन करता हुआ उस कार्य को कर सके तो करे। यदि प्रत्याख्यान के साथ वह कार्य सम्पन्न न कर सके तो पाहार कर ले। इस अवस्था में प्रत्याख्यान भंग नहीं होता / इस अर्थ के अनुसार आचार्यादि महान् पुरुष 'महत्तर' हैं। उनके आदेश से ही यह आगार सेवन किया जा सकता है। पूर्वार्ध-प्रत्याख्यान के समान ही अपार्ध-प्रत्याख्यान भी होता है / अपार्ध-प्रत्याख्यान का अर्थ है तीन प्रहर दिन चढ़े तक आहार ग्रहण न करना / अपार्ध-प्रत्याख्यान ग्रहण करते समय 'पुरिमड्ढे' के स्थान में 'प्रवड्ढं' पाठ बोलना चाहिये / शेष पाठ दोनों प्रत्याख्यानों का समान है। 4. एकासन-सूत्र एगासणं पच्चक्खामि तिविहं पि आहारं असणं, खाइम, साइमं / अन्नत्थऽणाभोगेणं, सहसागारेणं, सागारियागारेणं, अाउंटण-पसारणेणं, गुरु-अन्भुट्ठाणेणं, पारिट्ठावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सब्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि।। भावार्थ-मैं एकाशन तप स्वीकार करता हूँ। फलत: अशन, खादिम और स्वादिम–इन तीनों प्रकार के प्राहारों का प्रत्याख्यान करता हूँ। इस व्रत के प्रागार आठ हैं, यथा (1) अनाभोग, (2) सहसागार, (3) सागारिकाकार, (4) आकुञ्चनप्रसारण, (5) गुर्वभ्युत्थान, (6) पारिष्ठापनिकाकार, (7) महत्तराकार, (8) सर्वसमाधिप्रत्ययाकार / उक्त आठ आगारों के सिवा आहार का त्याग करता हूँ। विवेचन-दिन में एक बार भोजन करना, एकाशन तप कहलाता है। एकाशन का अर्थ है-एक+अशन,' अर्थात् एक बार भोजन करना। प्रत्याख्यान, गृहस्थ तथा लाधु दोनों के लिए समान ही है। फिर भी गृहस्थ को ध्यान रहे कि वह एकाशन में अचित्त अर्थात् प्रासुक आहार-पानी ही ग्रहण करे। साधु को तो यावज्जीवन के लिए अप्रासुक आहार का त्याग ही है / श्रावक को मूल पाठ बोलते समय 'पारिट्ठावणियागरेणं' पाठ नहीं बोलना चाहिए। एकाशन और द्विकाशन में भोजन करते समय तो यथेच्छ चारों आहार लिए जा सकते हैं, परन्तु भोजन के बाद शेषकाल में भोजन का त्याग होता है / यदि एकाशन तिविहार करना हो तो शेषकाल में पानी पिया जा सकता है / यदि चउविहार करना हो तो पानी भी नहीं पिया जा सकता। यदि दुविहार करना हो तो भोजन के बाद पानी तथा स्वादिम-मुखवास लिया जा सकता है / आज१. 'एगासण' प्राकृत-शब्द है, जिसके संस्कृत रूपान्तर दो होते हैं.--'एकाशन' और 'एकासन'। (1) 'एकाशन' का अर्थ है-एक बार भोजन करना / (2) 'एकासन' का अर्थ है-एक आसन से भोजन करना / 'एगासण' में दोनों ही अर्थ ग्राह्य हैं। 'एक सकृत अशनं---भोजनं एक वा आसनं--पुताचलनतो यत्र प्रत्याख्याने तदेकाशनमेकासनं वा, प्राकृते द्वयोरपि एगासणमिति रूपम् / -प्रवचनसारोद्धारवृत्ति / प्राचार्य हरिभद्र एकासन की व्याख्या करते हैं कि एक बार बैठकर फिर न उठते हुए भोजन करना। 'एकाशनं नाम सकृनुपविष्ट पताचालनेन भोजनम / -आवश्यकवृत्ति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003496
Book TitleAgam 28 Mool 01 Avashyak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Mahasati Suprabha
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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