________________ साहित्यवाचस्पति श्री देवेन्द्रमुनिजी म. ने विस्तृत प्रस्तावना लिख कर इस संस्करण को विभूषित किया है। उनके प्रति आभारी होना स्वाभाविक है। पूरी सावधानी बरतने के बावजूद अगर कहीं कोई त्रुटि रह गई हो तो उदार पाठक हमें अवश्य सूचना दें, जिससे अगले संस्करण में उसका परिमार्जन किया जा सके। -साध्वी सुप्रभा 'सुधा' [15] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org