________________ [आवश्यकसूत्र सूक्ष्म जीव वे कहलाते हैं जो समस्त लोकाकाश में व्याप्त हैं किन्तु चर्म-चक्षुओं से दृष्टिगोचर नहीं होते। वे इतने सूक्ष्म होते हैं कि मारने से मरते नहीं और काटने से कटते नहीं हैं / वे सूक्ष्मनामकर्म के उदय वाले प्राणी हैं और सब एकेन्द्रिय स्थावर ही होते हैं / ध्यान रहे कि कुथुवा जैसे छोटे शरीर वाले जीवों की इन सूक्ष्म जीवों में गिनती नहीं है। कुंथुवा आदि जीव बादरनामकर्म के उदय वाले हैं, अतएव उनकी गणना बादर-त्रस जीवों में होती है। पर्याप्ति का अभिप्राय है जीव की शक्ति की पूर्णता / जीव जब नवीन जन्म ग्रहण करता है तब उस नूतन शरीर, इन्द्रिय आदि के निर्माण के लिये उपयोगी पुद्गलों की आवश्यकता होती है। उन पुद्गलों को ग्रहण करके शरीर, इन्द्रिय, भाषा आदि के रूप में परिणत करने की शक्ति की परिपूर्णता ही पर्याप्ति कहलाती है। यह परिपूर्णता प्राप्त कर लेने वाले जीव पर्याप्त कहलाते हैं और जब तक वह शक्ति पूरी नहीं होती तब तक वे अपर्याप्त कहलाते हैं। एकेन्द्रिय जीवों में चार, द्वीन्द्रिय से लेकर असंज्ञी पंचेन्द्रियों तक में पांच और संज्ञी-समनस्क प्राणियों में छह पर्याप्तियां होती हैं। जिस जीव में जितनी पर्याप्तियां संभव हैं, उनकी पूर्ति एक अन्तर्मुहूर्त काल में ही हो जाती है। पंद्रह परमाधार्मिक 1. अम्ब, 2. अम्बरीष, 3. श्याम, 4. शबल, 5. रौद्र, 6. उपरौद्र, 7. काल, 8. महाकाल, 9. असिपत्र, 10. धनुः, 11. कुम्भ, 12. बालुक, 13. वैतरणि, 14. खरस्वर, 15. महाघोष। ये परम अधार्मिक, पापाचारी, क र एवं निर्दय असुर जाति के देव हैं। नारकीय जीवों को व्यर्थ ही, केवल मनोविनोद के लिए यातना देते हैं। इन वशेष परिचय इस प्रकार है१. अम्बनारक जीवों को आकाश में ले जाकर नीचे पटकने वाले, गर्दन पकड़कर गड्ढे में गिराने वाले, उल्टे मुह आकाश में उछाल कर गिरते समय बर्थी आदि भौंकने वाले।। 2. अम्बरीष-नैरयिकों को मुद्गर आदि से कूट कर, करोंत, कैची आदि से टुकड़े-टुकड़े कर अधमरे कर देने वाले / 3. श्याम–कोड़ा आदि से पीटने वाले, हाथ-पैर आदि अवयवों को बुरी तरह काटने वाले, शूल-सुई आदि से बींधने वाले आदि / 4. शबल—मुद्गर आदि द्वारा नारकियों की हड्डी के जोड़ों को चूर-चूर करने वाले / 5. रौद्र-नरकस्थ जीवों को खूब ऊंचे उछाल कर गिरते समय तलवार, भाले आदि में पिरोने वाले। 6. उपरौद्र-नारकीय जीवों के हाथ-पैर तोड़ने वाले / 7. काल-कुभी आदि में पकाने वाले। 8. महाकाल पूर्वजन्म के मांसाहारी जीवों को उन्हीं की पीठ आदि का मांस काट-काट कर खिलाने वाले। 6. असिपत्र-तलवार जैसे तीखे पत्तों के वन की विकुर्वणा करके उस वन में छाया की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org