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________________ चतुर्थ अध्ययन : प्रतिक्रमण] [31 पहिला महाव्रत के विषय जो कोई अतिचार लाग्यो होय तो पालोऊ, (1) इन्दथावरकाय (2) बम्भथावरकाय (3) सिप्पथावरकाय (4) सम्मतीथावरकाय (5) पायावचथावरकाय (6) जंगमकाय द्रव्य से इनकी हिंसा की होय, क्षेत्र से समस्त लोक में, काल से जावजीव तक भाव से तीन करण तीन योग से महाव्रत के विषय जो कोई पाप दोष लाग्यो होय तो देवसिय सम्बन्धी तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। दूसरा महाव्रत के विषय जो कोई अतिचार लाग्यो होय तो पालोऊ, कोहा वा, लोहा वा, हासा वा, क्रीडा कुतुहलकारी द्रव्य से झूठ बोल्यो होऊ, क्षेत्र से समस्त लोक में, काल से जावजीव तक, भाव से तीन करण तीन योग से. दूसरा महाव्रत के विषय जो कोई पाप दोष लाग्यो होय तो देवसिय सम्बन्धी तस्स मिच्छा मि दुक्कडं / तीसरा महाव्रत के विषय जो कोई अतिचार लाग्यो होय तो पालोऊ, कामराग, दृष्टिराग देवता सम्बन्धी, मनुष्य तिर्यच सम्बन्धी द्रव्य से काम भोग सेव्या, होय, क्षेत्र से समस्त लोक में, काल से जावजीव तक, भाव से तीन करण तीन योग से चौथा महाव्रत के विषय कोई पाप दोष लाग्यो होय तो देवसिय सम्बन्धी तस्स मिच्छा मि दुक्कडं / पांचवां महावत के विषय जो कोई अतिचार लाग्यो होय तो आलोऊ, सचित्त परिग्रह, अचित्त परिगृह, मिश्र परिग्रह, द्रव्य से छति वस्तु पर मूर्छा को होय, पर वस्तु की इच्छा की होय, सुई धातु मात्र परिग्रह राख्यो होय, क्षेत्र से समस्त लोक में, काल से जावजीव तक, भाव से तीन करण तीन योग से पांचवां महावत के विषय जो कोई दोष लाग्यो होय तो देवसिय सम्बन्धी तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। छट्ठा रात्रि भोजन के विषय जो कोई अतिचार होय तो पालोऊं, चार आहार असणं, पाणं, खाइयं, साइम, सीत मात्र, लेपमात्र रातवासी राख्यो होय, रखायो होय, राखता प्रत्ये भलो जाण्यो होय तो देवसिय सम्बन्धी तस्स मिच्छा मि दुक्कडं / अठारह पाप (1) प्राणातिपात (2) मृषावाद (3) अदत्तादान (4) मैथुन (5) परिग्रह (6) क्रोध (7) मान (8) माया (9) लोभ (10) राग (11) द्वेष (12) कलह (13) अभ्याख्यान (14) पैशुन्य (15) परपरिवाद (16) रति अरति (17) मायामोसो (18) मिथ्यादर्शनशल्य ये अट्ठारह पाप सेव्या होय, सेवाया होय, सेवता प्रत्ये भलो जाण्यो होय तो देवसिय सम्बन्धी तस्स मिच्छा मि दुक्कडं / __ पांच मूलगुण महाव्रत के विषय जो कोई पाप दोष लाग्यो होय तो देवसिय सम्बन्धी तस्स मिच्छा मि दुक्कडं / इस उत्तर गुण पचक्खाण के विषय जो कोई पाप दोष लाग्यो होय तो देवसिय सम्बन्धी तस्स मिच्छा मि दुक्कडं / तेतीस पाशातना में गुरु की, बड़ों की कोई भी आशातना हुई हो तो देवसिय सम्बन्धी तस्स मिच्छा मि दुक्कडं / शय्यासत्र इच्छामि पडिक्कमि, पगामसिज्जाए, निगामसिज्जाए, संथाराउव्वट्टणाए, परियट्टणाए, अाउंटणाए, पसारणाए, छप्पईसंघट्टणाए, कूइए, कक्कराइए, छोए, जंभाइए, प्रामोसे ससरवखामोसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003496
Book TitleAgam 28 Mool 01 Avashyak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Mahasati Suprabha
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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