SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीसरी दशा [17 तज्जाएणं पडिहणित्ता, भवइ आसायणा सेहस्स / 25. सेहे रायणियस्स कहं कहेमाणस्स 'इति एवं' वत्ता, भवइ प्रासायणा सेहस्स / 26. सेहे रायणियस्स कहं कहेमाणस्स 'नो सुमरसी' ति वत्ता, भवइ पासायणा सेहस्स / 27. सेहे रायणियस्स कहं कहेमाणस्स णो समणसे, भवइ आसायणा सेहस्स / 28. सेहे रायणियस्स कहं कहेमाणस्स परिसं भेत्ता, भवइ आसायणा सेहस्स / 29. सेहे रायणियस्स कहं कहेमाणस्स कहं आच्छिादित्ता, भवइ पासायणा सेहस्स / 30. सेहे रायणियस्स कहं कहेमाणस्स तीसे परिसाए अणुट्टियाए अभिन्नाए अवच्छिन्नाए अव्वोगडाए दोच्चंपि तच्चपि तमेव कहं कहिता भवइ आसायणा सेहस्स। 31. सेहे रायणियस्स सिज्जा-संथारगं पाएणं संघट्टित्ता हत्थेण अणणुण्णविता गच्छइ, भवइ आसायणा सेहस्स / 32. सेहे रायणियस्स सिज्जा-संथारए चिट्ठित्ता वा, निसीइत्ता वा, तुयट्टित्ता वा, भवइ आसायणा सेहस्स / 33. सेहे रायणियस्स उच्चासणंसि वा, समासणंसि वा चिद्वित्ता वा, निसीइत्ता वा, तुट्टित्ता वा, भवइ आसायणा सेहस्स। एयाप्रो खलु ताओ थेरेहि भगवंतेहि तेत्तीसं आसायणाओ पण्णत्ताओ, ति बेमि / अर्थ-हे आयुष्मन ! मैंने सुना है उन निर्वाणप्राप्त भगवान महावीर ने ऐसा कहा है-- इस आर्हतप्रवचन में निश्चय से स्थविर भगवन्तों ने तेतीस आशातनाएँ कही हैं। प्र०–उन स्थविर भगवन्तों ने तेतीस पाशातनाएँ कौन सी कही हैं ? उ०-उन स्थविर भगवन्तों ने ये तेतीस आशातनाएँ कही हैं, जैसे 1. शैक्ष (अल्प दीक्षापर्यायवाला), रानिक साधु के आगे चले तो उसे आशातना दोष लगता है। 2. शैक्ष, रात्निक साधु के समश्रेणी-बराबरी में चले तो उसे आशातना दोष लगता है / 3. शैक्ष, रानिक साधु के अति समीप होकर चले तो उसे आशातना दोष लगता है। 4. शैक्ष, रात्निक साधु के आगे खड़ा हो तो उसे पाशातना दोष लगता है। 5. शैक्ष, रालिक साधु के समश्रेणी में खड़ा हो तो उसे आशातना दोष लगता है। 6. शैक्ष, रानिक साधु के प्रति समीप खड़ा हो तो आशातना दोष लगता है। 7. शैक्ष, रात्निक साधु के आगे बैठे तो उसे अाशातना दोष लगता है। रात्निक साधु के समश्रेणी में बैठे तो उसे पाशातना दोष लगता है / 9. शैक्ष, रात्निक साधु के अतिसमीप बैठे तो उसे अाशातना दोष लगता है। 10. शैक्ष, रालिक साधु के साथ बाहर मलोत्सर्ग-स्थान पर गया हुआ हो, वहाँ शैक्ष रात्निक से पहले आचमन (शौच-शुद्धि) करे तो आशातना दोष लगता है। 11. शैक्ष, रात्निक के साथ बाहर विचारभूमि या विहारभूमि (स्वाध्यायस्थान) में जावे तब शैक्ष रात्निक से पहले गमनागमन की आलोचना करे तो उसे अाशातना दोष लगता है / 12. कोई व्यक्ति रात्निक के पास वार्तालाप के लिए आये, यदि शैक्ष उससे पहले ही वार्तालाप करने लगे तो उसे आशातना दोष लगता है। 13. रात्रि में या विकाल ( सन्ध्यासमय) में रात्निक साधु शिष्य को सम्बोधन करके कहे-'हे आर्य ! कौन-कौन सो रहे हैं और कौन-कौन जाग रहे हैं ?" उस समय जागता हुना भी शैक्ष यदि रात्निक के वचनों को अनसुना करके उत्तर न दे तो उसे आशातना दोष लगता है / 14. शैक्ष, यदि अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार को लेकर उसकी आलोचना पहले किसी अन्य शैक्ष के पास करे और पीछे रात्निक के समीप करे तो उसे अाशातना दोष लगता है। 15. शैक्ष, यदि अशन, पान, खादिम और स्वादिम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003495
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy