________________ प्रथम दशा] संयमनिर्वाह के लिए श्रमण सीमित पदार्थों का ही सेवन करे। शास्त्रों में छह कारण आहार करने के कहे हैं और सामान्य नियम तो यह है कि दिन में एक बार ही भिक्षु आहार ग्रहण करे / बार-बार कुछ न कुछ खाते रहना उन्नीसवां असमाधिस्थान है। 20. अनेषणीय भक्त-पान आदि ग्रहण करना-आहार-वस्त्रादि आवश्यक पदार्थ ग्रहण करते समय उद्गम, उत्पादन और एषणा के दोषों को टालकर गवेषणा न करने से संयम दूषित होता है / नियुक्ति प्रादि व्याख्याग्रन्थों में एषणा के 45 दोष कहे हैं। उनके अतिरिक्त आगमों में अनेक दोष वणित हैं / ठाणांग के चौथे ठाणे में शुद्ध गवेषणा करने वाले को अनुत्पन्न अतिशय ज्ञान की उपलब्धि होना कहा गया है। भक्त-पान ग्रहण करते समय गवेषणा न करने से संयम में शिथिलता आती है / यह बीसवां असमाधिस्थान है। इन 20 असमाधिस्थानों का त्याग करके भिक्षु को समाधिस्थानों का ही सेवन करना चाहिये, जिससे संयम में समाधि-प्राप्ति हो सके। // प्रथम दशा समाप्त। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org