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________________ इस जैसे बनें। महारानी चेलना के सुन्दर सलौने रूप व ऐश्वर्य को देखकर श्रमणियों के अन्तर्मानस में यह संकल्प हुआ कि हमारी साधना का फल हो तो हम आगामी जन्म में चलना जैसी बनें / अन्तर्यामी महावीर ने उनके संकल्प को जान लिया और श्रमण-श्रमणियों से पूछा कि क्या तुम्हारे मन में इस प्रकार का संकल्प हुआ है? उन्होंने स्वीकृति सूचक उत्तर दिया--"हां, भगवन् ! यह बात सत्य है।" भगवान् ने कहा-"निर्ग्रन्थ-प्रवचन सर्वोत्तम है, परिपूर्ण है, सम्पूर्ण कर्मों को क्षीण करने वाला है। जो श्रमण या श्रमणियां इस प्रकार धर्म से विमुख होकर ऐश्वर्य आदि को देखकर लुभा जाते हैं और निदान करते हैं वे यदि बिना प्रायश्चित्त किए आयु पूर्ण करते हैं तो देवलोक में उत्पन्न होते हैं और वहां से वे मानवलोक में पुनः जन्म लेते हैं। निदान के कारण उन्हें केवली धर्म की प्राप्ति नहीं होती। वे सदा सांसारिक विषयों में ही मुग्ध बने रहते हैं।" शास्त्रकार ने 9 प्रकार के निदानों का वर्णन कर यह बताया कि निर्ग्रन्थ प्रवचन ही सब कर्मों से मुक्ति दिलाने वाला एकमात्र साधन है / अतः निदान नहीं करना चाहिए और किया हो तो आलोचना-प्रायश्चित्त करके मुक्त हो जाना चाहिए। उपसंहार इस प्रकार प्रस्तुत प्रागम में भगवान महावीर की जीवनी विस्तार से पाठवी दशा में मिलती है। चित्तसमाधि एवं धर्मचिन्ता का सुन्दर वर्णन है / उपासकप्रतिमाओं व भिक्षुप्रतिमाओं के भेद-प्रभेदों का भी वर्णन है। बृहत्कल्प बृहत्कल्प का छेदसूत्रों में गौरवपूर्ण स्थान है / अन्य छेदसूत्रों की तरह इस सूत्र में भी श्रमणों के आचारविषयक विधि-निषेध, उत्सर्ग-अपबाद, तप, प्रायश्चित्त आदि पर चिन्तन किया गया है। इसमें छह उद्देशक हैं, 81 अधिकार हैं, 473 श्लोकप्रमाण उपलब्ध मूलपाठ है / 206 सूत्रसंख्या है। प्रथम उद्देशक में 50 सूत्र हैं / पहले के पांच सूत्र तालप्रलंब विषयक है। निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों के लिए ताल एवं प्रलंब ग्रहण करने का निषेध है। इसमें अखण्ड एवं अपक्व तालफल व तालमूल ग्रहण नहीं करना चाहिए किन्तु विदारित, पक्व ताल प्रलंब लेना कल्प्य है, ऐसा प्रतिपादित किया गया है, आदि-आदि / मासकल्प विषयक नियम में श्रमणों के ऋतुबद्धकाल–हेमन्त और ग्रीष्म ऋतु के 8 महिनों में एक स्थान पर रहने के अधिकतम समय का विधान किया है। श्रमणों को सपरिक्षेप अर्थात् सप्राचीर एवं प्राचीर से बाहर निम्नोक्त 16 प्रकार के स्थानों में वर्षाऋतु के अतिरिक्त अन्य समय में एक साथ एक मास से अधिक ठहरना नहीं कल्पता। 1. ग्राम [जहां राज्य की अोर से 18 प्रकार के कर लिये जाते हों] 2. मगर [जहां 18 प्रकार के कर न लिए जाते हों 3. खेट [जिसके चारों ओर मिट्टी की दीवार हो] 4. कर्बट [जहां कम लोग रहते हों] 5. मडम्ब [जिसके बाद ढाई कोस तक कोई गाँव न हो] [ 49 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003495
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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