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________________ प्रायश्चित्त के भेद-प्रभेद 1. ज्ञान-प्रायश्चित्त-ज्ञान के अतिचारों की शुद्धि के लिये आलोचना आदि प्रायश्चित्त करना।' 2. दर्शन-प्रायश्चित्त-दर्शन के अतिचारों की शुद्धि के लिये आलोचना आदि प्रायश्चित्त करना। 3. चारित्र प्रायश्चित्त-चारित्र के अतिचारों की शुद्धि के लिये आलोचना आदि प्रायश्चित्त करना / 3 4. वियत्त किच्चपायच्छित्ते---इस चतुर्थ प्रायश्चित के दो पाठान्तर हैं 1. वियत्तकिच्चपायच्छित्ते-व्यक्तकृत्य प्रायश्चित / 2. चियत्तकिच्चपायच्छित्ते-त्यक्तकृत्य प्रायश्चित / क---व्यक्तकृत्य प्रायश्चित्त के दो अर्थ हैं--(१) व्यक्त---अर्थात आचार्य उनके द्वारा निर्दिष्ट प्रायश्चित्त कृत्य पाप का परिहारक होता है। तात्पर्य यह है कि आचार्य यदा-कदा किसी को प्रायश्चित्त देते हैं तो वे अतिचारसेवी के द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव आदि देखकर देते हैं। प्राचार्य द्वारा दिये गये प्रायश्चित्त का उल्लेख दशाकल्प-व्यवहार आदि में हो या न हो फिर भी उस प्रायश्चित्त से आत्मशुद्धि अवश्य होती है। ___ख----व्यक्त अर्थात् स्पष्ट छेद सूत्र निर्दिष्ट प्रायश्चित्त कृत्य / भिन्न भिन्न अतिचारों के भिन्न-भिन्न (मालोचनादि कृत्य) प्रायश्चित्त / क-त्यक्त कृत्यप्रायश्चित्त ---जो कृत्य त्यक्त हैं उनका प्रायश्चित्त / ख—चियत्त—का एक अर्थ 'प्रीतिकर' भी होता है। प्राचार्य के प्रीतिकर कृत्य वैयावृत्य आदि भी प्रायश्चित्त रूप हैं। दस प्रकार के प्रायश्चित्त(१) पालोचना योग्य-जिन अतिचारों की शूद्धि प्रालोचना से हो सकती है ऐसे अतिचारों की आलोचना (ङ) जिस प्रकार लौकिक व्यवहार में सामाजिक या राजनैतिक अपराधियों को दण्ड देने का विधान है—इसौ प्रकार मूलगुण या उत्तरगुण सम्बन्धी (1) अतिक्रम, (2) व्यतिक्रम, (3) अतिचार और (4) अनाचारसेवियों को प्रायश्चित्त देने का विधान है। सामान्यतया दण्ड और प्रायश्चित्त समान प्रतीत होते हैं, किन्तु दण्ड क्रूर होता है और प्रायश्चित्त अपेक्षाकृत कोमल होता है। दण्ड अनिच्छापूर्वक स्वीकार किया जाता है और प्रायश्चित्त स्वेच्छापूर्वक स्वीकार किया जाता है / दण्ड से बासनाओं का दमन होता है और प्रायश्चित्त से शमन होता है। 1. ज्ञान के चौदह अतिचार / 2. दर्शन के पाँच अतिचार / 3. चारित्र के एकसौ छह (106) अतिचार पांच महाव्रत से पच्चीस अतिचार / रात्रिभोजन त्याग के दो अतिचार। इर्यासमिति के चार अतिचार / भाषासमिति के दो अतिचार। एषणा समिति के सेंतालीस अतिचार। आदान निक्षेपणा समिति के दो अति चार / परिष्ठापना समिति के दस प्रतिचार / तीन गुप्ति के 9 अतिचार। संलेखना के 5 अतिचार 4. 'चियत्त' का 'प्रीतिकर' अर्थसूचक संस्कृत रूपान्तर मिलता नहीं है। -अर्धमागधीकोश भाग 2 चियत्तशब्द पृ० 628 [ 27 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003495
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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