________________ परिशिष्ट इस प्रकाशन में जिन पाठों को अनुपयुक्त प्रविष्ट समझकर अलग कर दिया गया है उनको तथा लिपिदोष से जिन विकृत पाठों को विकृत बने समझकर सुधारा गया है, वे सब पाठ इस परिशिष्ट में दिए गए हैं। 1. सुयं मे पाउस ! तेणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु थेरेहिं भगवंतेहि एक्कारस उवासगपडिमाओ पण्णत्ताओ। 2. कयरा खलु तानो थेरेहि भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पण्णत्ताओ? 3. इमाओ खलु ताओ थेरेहि भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पण्णत्तानो, तं जहाअकिरियावादी यावि भवति–नाहियवादी नाहियपण्णे नाहियदिट्ठी, नो सम्मावादी, नो नितियावादी नसंति-परलोगवादी। - गस्थि इहलोए, गत्थि परलोए, णत्थि माता, णत्थि पिता, पत्थि अरहंता, णस्थि चक्कवट्टी, पत्थि बलदेवा, गस्थि वासुदेवा, णस्थि सुक्कडदुक्कडाणं फलवित्तिविसेसो। णो सुच्चिण्णा कम्मा सुचिण्णफला भवंति / णो दुच्चिण्णा कम्मा दुच्चिण्णफला भवंति, अफले कल्लाणपावए, णो पच्चायंति जीवा, पत्थि णिरयादि ह्व णस्थि सिद्धी। से एवंषादी एवंपण्णे एवंदिट्ठी एवं छंदरागमभिनिविठे यावि भवति / से य भवति महिच्छ महारंभे महापरिग्गहे अहम्मिए अहम्माणुए अहम्मसेवी अहम्मिठे अधम्मक्खाई अधम्मरागी अधम्मपलोई अधम्मजीवी अधम्मपलज्जणे अधम्मसोलसमुदाचारे अधम्मेणं चेव वित्ति कप्पेमाणे विहरइ। "हण, छिद, भिद" वेकत्तए लोहियपाणी पावो चंडो रुद्दो खुद्दो साहस्सियो उक्कंचण-वंचणमाया-निगडी-कवड-कूड-साति-संपयोगबहुले दुस्सीले दुपरिचए दुरणुणेए दुव्वए दुप्पडियानंदे निस्सीले निग्गुणे निम्मेरे निपच्चक्खाणपोसहोववासे असाहू / सव्वानो पाणाइवायाओ अप्पडिविरए जावज्जीवाए।। एवं जाव सव्वानो कोहाओ, सव्वाओ माणाओ, सव्वाओ मायानो, सव्वानो लोभाओ, पेज्जाओ दोसाओ कलहामो अम्भक्खाणाओ पेसुग्णपरपरिवादाप्रो अरतिरतिमायामोसानो मिच्छादसणसल्लाओ अपडिविरए जावज्जीवाए। सव्वाओ ण्हाणुम्मद्दणा-अन्भंगण-वण्णगविलेवण-सद्द-फरिस-रस-रूव-गंध-मल्लालंकाराओअपडिविरए जावज्जीवाए। सम्बाओ सगड-रह-जाण-जुग्ग-गिल्लि-थिल्लि-सीया-संदमाणिय-सयणासणजाण-वाहण-भोयण. पवित्थरविधीओ अपडिविरए जावज्जीवाए / सव्वाओ पास-हत्थि-गो-महिस-गवेलय-दासी-दास-कम्मकरपोरुसाओ अपडिविरए जावज्जीवाए। सवालो कय-विक्कय-मासद्धमास-रूवगसंववहारानो अपडिविरए जावज्जीवाए, हिरण्ण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org