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________________ 112] [दशाश्रुतस्कन्ध निदान के विषय में यह सहज प्रश्न उत्पन्न होता है कि किसी के संकल्प करने मात्र से उस ऋद्धि की प्राप्ति कैसे हो जाती है ? ___ समाधान यह है कि किसी के पास रत्न या सोने-चांदी का भंडार है, उसे रोटी-कपड़े आदि सामान्य पदार्थों के लिये दे दिया जाए तो वे सहज ही प्राप्त हो सकते हैं। वैसे ही शाश्वत मोक्ष-सुख देने वाली तप-संयम की विशाल साधना के फल से मानुषिक या दैविक तुच्छ भोगों का प्राप्त होना कोई महत्त्व की बात नहीं है / इसे समझने के लिये एक दृष्टान्त भी दिया जाता है एक किसान के खेत के पास किसी धनिक राहगीर ने दाल-बाटी-चूरमा बनाया / किसान का मन चरमा आदि खाने के लिए ललचाया, किसान के मांगने पर भी धनिक ने कहा कि यह तेरा खेत बदले में दे तो भोजन मिले / किसान ने स्वीकार किया। भोजन कर बड़ा आनंदित हुआ। जैसे खेत के बदले एक बार मनचाहा भोजन का मिलना कोई महत्त्व नहीं रखता, वैसे ही तप-संयम को मोक्षदायक साधना से एक दो भव के भोग मिलना महत्त्व नहीं रखता। किन्तु जैसे खेत के बदले भोजन खा लेने के बाद दूसरे दिन से वर्ष भर तक किसान पश्चात्ताप से दुःखी होता है, वैसे ही तप-संयम के फल से एक भव का सुख प्राप्त हो भी जाय किन्तु मोक्षदायक साधना खोकर नरकादि के दुःखों का प्राप्त होना निदान का ही फल है। __ जिस प्रकार खेत के बदले एक दिन का मिष्ठान्न भोजन प्राप्त करने वाला किसान मूर्ख गिना जाता है, वैसे ही मोक्षमार्ग की साधना का साधक निदान करे तो महामूर्ख ही कहलायेगा / अतः भिक्षु को किसी प्रकार का निदान न करना और संयम-तप की निष्काम साधना करना ही श्रेयस्कर है। 00 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003495
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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