________________ 92] [दशाश्रुतस्कन्ध हे आयुष्मन् श्रमणो ! उस निदानशल्य का यह पापकारी परिणाम है कि वह केवलिप्रज्ञप्त धर्म का श्रवण भी नहीं कर सकता है। निर्ग्रन्थी का मनुष्यसम्बन्धी भोगों के लिये निदान करना एवं खलु समणाउसो ! मए धम्मे पण्णत्ते, इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे जाव' सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति। जस्स णं धम्मस्स निग्गंथी सिक्खाए उद्विया विहरमाणी जाव पासेज्जा से जा इमा इथिया भवइ-एगा, एगजाया, एगाभरणपिहाणा, तेल्ल-पेला इव सुसंगोपिता, चेल-पेला इव सुसंपरिगहिया, रयणकरंडकसमाणी। तोसे णं अतिजायमाणीए वा, निज्जायमाणीए वा, पुरओ महं दासी-दास-किंकर-कम्मकरपुरिसा छत्तं भिगारं गहाय निग्गच्छति जाव तस्स णं एगमवि प्राणवेमाणस्स जाव चत्तारि पंच अवुत्ता चेव अब्भुट्ठति, “भण देवाणुप्पिया ! कि करेमो जाव' कि ते आसगस्स सदति ?" जं पासित्ता निग्गंथी णिदाणं करेति -- ___ "जइ इमस्स सुचरियतवनियमबंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अस्थि, तं अहमदि आगमिस्साए इमाई एयारवाई उरालाई माणुस्सगाई कामभोगाइं भुजमाणी विहरामि-से तं साहु / " __एवं खलु समणाउसो! निग्गंथी णिदाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अणालोइय अप्पडिक्कता कालेमासे कालं किच्चा अण्णतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारा भवइ जाव' दिव्वाइं भोगाई भुजमाणी विहरति जाव' सा गं ताओ देवलोगानो आउखएणं, भवक्खएणं, ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महामाउया भोगपुत्ता महामाउया एतेसि णं अण्णयरंसि कुलंसि दारियत्ताए पच्चायाति / सा णं तत्थ दारिया भवइ सुकुमाला जाव सुरूवा।। तए णं तं दारियं अम्मापियरो उम्मुक्कबालभावं, विण्णाणपरिणयमित्तं, जोवणगमणुप्पत्तं, पडिरवेणं सुक्केणं पडिरूवस्स भतारस्स भारियत्ताए दलयंति / ___ सा णं तस्स भारिया भवइ एगा, एगजाया, इट्ठा, कता, पिया, मणुण्णा, मणामा, धेज्जा, वेसासिया, सम्मया, बहुमया, अणुमया रयणकरंडगसमाणा / तोसे णं अतिजायमाणीए वा, निज्जायमाणीए वा पुरतो महं दासी-दास-किंकर-कम्भकर पुरिसा छत्तं, भिंगारं गहाय निग्गच्छंति जाव' तस्स णं एगमवि आणवेमाणस्स जाव चत्तारि पंच अबुत्ता चेव अब्भुट्ठति--"भण देवाणुप्पिया! किं करेमो जाव' कि ते आसगस्स सदति ?" 1. सूय. श्रु. 2, अ. 2, सूत्र 58-61 (अंगसुत्ताणि) 2-10. प्रथम निदान में देखें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org