________________ दसयों दशा] [87 ___ हे देवानुप्रिये ! संयम और तप के मूर्तरूप अरहंतों के नाम-गोत्र श्रवण करने का ही महाफल होता है तो उनके दर्शन करने के लिए जाना, वन्दन-नमस्कार करना, सुख-साता पूछना, पर्युपासना करना, एक भी धार्मिक वचन सुनना और विपुल अर्थ ग्रहण करने के फल का तो कहना ही क्या है अर्थात् महाफलदायी होता है। इसलिए हे देवानुप्रिये ! चलें, श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन-नमस्कार करें, उनका सत्कार-सम्मान करें, वे कल्याणरूप हैं, मंगलरूप हैं, देवाधिदेव हैं, ज्ञान के मूर्तरूप हैं, उनकी पर्युपासना करें। उनकी यह पर्युपासना इहभव और परभव में हितकर, सुखकर, क्षेमकर, मोक्षप्रद और भव-भव में मार्गदर्शक रहेगी। / उस समय वह चेलणादेवी श्रेणिक राजा से यह संवाद सुनकर एवं धारण कर हर्षित एवं संतुष्ट हो यावत् उसने श्रेणिक राजा के उन वचनों को विनयपूर्वक स्वीकार किया। फिर जहां स्नानगृह था वहां पाकर स्नानगृह में प्रवेश किया यावत् महत्तरावृद (दासियों) से वेष्टित होकर बाह्य उपस्थानशाला में श्रेणिक राजा के समीप आई। उस समय श्रेणिक राजा चेलणादेवी के साथ श्रेष्ठ धार्मिक रथ में बैठा यावत् गुणशील बगीचे में पाया यावत् पर्युपासना करने लगा। इसी प्रकार चेलणादेवी भी यावत् पर्युपासना करने लगी। उस समय श्रमण भगवान् महावीर ने ऋषि, यति, मुनि, मनुष्य और देवों की महापरिषद् में श्रेणिक राजा भंभसार एवं चेलणादेवी को यावत् धर्म कहा / परिषद् गई और राजा श्रेणिक भी गया। साधु-साध्वियों का निदान-संकल्प तत्थ गं एगइयाणं निम्गंथाणं निग्गंथीण य सेणियं रायं चेल्लणं च देवि पासित्ताणं इमेयारूवे अज्झथिए, चितिए, पत्थिए, मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्या-अहो णं सेणिए राया महड्ढिए जाव महासुक्खे, जे णं हाए जाव सव्वालंकार-विभूसिए, चेल्लणा देवीए सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगाई भुजमाणे विहरति / न मे दिट्ठा देवलोगसि, सक्खं खलु अयं देवे / जइ इमस्स सुचारयस्स तव-नियमबंभचेरवासस्स कल्लाणे फल-वित्तिविसेसे अस्थि, तं वयमवि आगमेस्साई इमाई एयाख्वाइं उरालाई माणुस्सगाई भोगाइं भुजमाणा विहरामो, से तं साहू / "अहो णं चेल्लणादेवी महिड्डिया जाव महासुक्खा जा णं ण्हाया जाव सव्वालंकारविभूसिया सेणिएणं रण्णा सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगाइं भुजमाणी विहरइ / न मे दिवाओ देवीप्रो देवलोगसि, सक्खा खलु इमा देवी / जइ इमस्स सुचरियस्स तव-नियम-बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अस्थि। तं वयमवि आगमिस्साई इमाई एयारूबाई उरालाई माणुस्सगाई भोगाइं भुजमाणीओ विहरामो, से तं साहू। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org