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________________ सातवी दशा] [65 आठवीं नवमी और दसवी प्रतिमा के एक-एक सप्ताह मिलाकर तीन सप्ताह तक एकांतर उपवास करना आवश्यक होता है तथा पारणे में प्रायम्बिल किया जाता है / दत्ति संख्या की मर्यादा को छोडकर भिक्षr के व अन्य सभी नियम पर्व प्रतिमा के समान पालन करने होते हैं। उपवास के दिन चारों आहार का त्याग करके सूत्रोक्त किसी एक प्रासन से ग्रामादि के बाहर पूर्ण दिन-रात स्थिर रहना होता है। तीनों प्रतिमाओं में केवल प्रासन का अंतर होता है। ___ आठवीं और नवमी प्रतिमा का प्रथम प्रासन "उत्तानासन" और "दंडासन" है। ये दोनों आकाश की तरफ मुख करके सोने के हैं, किंतु इनमें अंतर यह है कि उत्तानासन में हाथ पांव आदि फैलाये हुए या अन्य किसी भी अवस्था में रह सकते हैं और दंडासन में मस्तक से पांव तक पूरा शरीर दंड के समान सीधा लम्बा रहता है और हाथ पैर अंतर रहित रहते हैं। इसी प्रकार उक्त दोनों प्रतिमाओं का द्वितीय प्रासन “एक पाश्र्वासन" और 'लकुटासन' है। ये दोनों एक पसवाडे (करवट) से सोने के है किंतु इनमें अंतर यह है कि “एक पाश्र्वासन" में भूमि पर एक पार्श्व भाग से सोना होता है और लकुटासन में करवट से सोकर मस्तक एक हथेली पर टिकाकरऔर पांव पर पांव चढ़ाकर लेटे रहना होता है / इस प्रकार इसमें मस्तक और एक पांव भूमि से ऊपर रहता है। दोनों प्रतिमाओं का तृतीय आसन “निषद्यासन" और "उत्कुटुकासन" है। ये दोनों बैठने के आसन हैं / निषद्यासन में पलथी लगाकर पर्यंकासन से सुखपूर्वक बैठा जाता है और "उत्कुटुकआसन" में दोनों पांवों को समतल रख कर उन पर पूरे शरीर को रखते हुए बैठना होता है / यह उत्कृष्ट गुरुवंदन का पासन है। ___ दसवी प्रतिमा के तीनों आसनों की यह विशेषता है कि वे न बैठने के, न सोने के और न सीधे खड़े रहने के हैं किन्तु बैठने तथा खड़े रहने के मध्य की अवस्था के हैं। प्रथम गोदुहासन में पूरे शरीर को दोनों पांवों के पंजों पर रखना पड़ता है। इसमें जंघा उरु आपस में मिले हुए रहते हैं और दोनों नितम्ब एडी पर टिके हुए रहते हैं। दूसरे वीरासन में पूरा शरीर दोनों पंजों के आधार पर तो रखना पड़ता है किन्तु इसमें नितम्ब एडी से कुछ ऊपर उठे हुए रखने पड़ते हैं तथा जंघा और उरु में भी कुछ दूरी रखनी पड़ती है। इस प्रकार कुर्सी पर बैठे व्यक्ति के नीचे से कुर्सी निकाल देने पर जो प्राकार अवस्था उसकी होती है वैसा ही लगभग इस आसन का आकार समझना चाहिये। तीसरा प्रासन आम्रकुब्जासन है तथा विकल्प से इसका अंतकुब्जासन नाम और व्याख्या भी उपलब्ध है। इस आसन में भी पूरा शरीर तो पैरों के पंजों पर रखना पड़ता है, घुटने कुछ टेढ़े रखने होते हैं, शेष शरीर का सम्पूर्ण भाग सीधा रखना पड़ता है। जिस प्रकार आम ऊपर से गोल और नीचे से कुछ टेढ़ा होता है इसी प्रकार यह प्रासन किया जाता है / किसी भी एक आसन से 24 घंटे रहना यद्यपि कठिन है, फिर भी दसवीं प्रतिमा के तीनों आसन तो अत्यन्त कठिन हैं / सामान्य व्यक्ति के लिये तो इन आसनों में एक घंटा रहना भी अशक्य होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003495
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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