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________________ [शातस्कन्ध अर्थ-इसी प्रकार अहोरात्रिको प्रतिमा का भी वर्णन है। विशेष यह है कि निर्जल षष्ठभक्त करके ग्राम यावत् राजधानी के बाहर शरीर को थोड़ासा झुकाकर दोनों पैरों को संकुचित कर और दोनों भुजाओं को जानुपर्यन्त लम्बी करके कायोत्सर्ग करना चाहिए / शेष पूर्ववत् यावत् यह प्रतिमा जिनाज्ञा के अनुसार पालन की जाती है। एकरात्रिकी भिक्षुप्रतिमा एगराइयं भिक्खुपडिम पडिवनस्स प्रणगारस्स जाव अहियासेज्जा। . कप्पड़ से अट्ठमेणं भत्तेणं अपाणएणं बहिया गामस्स वा जाव रायहाणिस्स वा ईसि पन्भारगएणं कारणं एगपोग्गलट्ठिताए दिट्ठीए अणिमिसनयणेहिं अहापणिहितेहि गतेहिं सम्विविएहि गुहिं दो वि पाए साहट्ट बग्धारियपाणिस्स ठाणं ठाइत्तए / तत्थ से दिव्वमाणुस्सतिरिक्खजोणिया उपसग्गा समुप्पज्जेज्जा, ते णं उत्सग्गा पयलेज्ज वा, पवडेज्ज वा, नो से कप्पइ पयलितए वा, पवडित्तए वा। तत्य णं उच्चारपासवणेणं उव्वाहिज्जा, नो से कप्पइ उच्चारपासवणं उगिहित्तए वा, णिगिण्हित्तए वा। कप्पइ से पुष्वपडिलेहियंसि थंडिलंसि उच्चारपासवणं परिदृवित्तए, महाविहिमेव ठाणं ठाइत्तए। एगराइयं भिक्खुपडिमं सम्म अणणुपालेमाणस्स अणगारस्स इमे तओ ठाणा अहियाए, असुभाए, अक्खमाए अणिस्सेयसाए, अणणुगामियत्ताए भवंति, तं जहा 1. उम्मायं वा लभेज्जा, 2. दोहकालियं वा रोगायक पाउणिज्जा, 3. केवलिपण्णत्तानो वा धम्माओ भंसिज्जा। एगराइयं भिक्खुपडिमं सम्म अणुपालेमाणस्स अणगारस्स इमे तओ ठाणा हियाए, सुहाए, खमाए, निस्सेयसाए, अणुगामियत्ताए भवंति / तं जहा 1. ओहिनाणे वा से समुप्पज्जेज्जा, 2. मणपज्जवनाणे वा से समुप्पज्जेज्जा, 3. केवलनाणे वा से असमुप्पन्नपुव्वे समुप्पज्जेज्जा। एवं खलु एगराइयं भिक्खुपडिम प्रहासुतं, अहाकप्पं, अहामग्गं, अहातच्चं, सम्मं कारणं फासित्ता, पालित्ता, सोहित्ता, तीरित्ता, किट्टित्ता, आराहित्ता, आणाए अणुपालिता या वि भवति / एकरात्रिकी भिक्षुप्रतिमाधारी अनगार यावत् शारीरिक क्षमता से उसे सहन करे। उसे निर्जल अष्टमभक्त करके ग्राम यावत् राजधानी के बाहर शरीर को थोड़ा-सा आगे की ओर झुकाकर, एक पदार्थ पर दृष्टि स्थिर रखते हुए अनिमेष नेत्रों से और निश्चल अंगों से सर्व इन्द्रियों को गुप्त रखते हुए दोनों पैरों को संकुचित कर एवं दोनों भुजाओं को जानुपर्यन्त लम्बी करके कायोत्सर्ग से स्थित रहना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003495
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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