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________________ चौथी दशा] आचार्य और गण के प्रति शिष्य के कर्तव्य तस्स णं एवं गुणजाइयस्स अंतेवासिस्स इमा चउविवहा विणयपडिवत्ती भवइ, तं जहा 1. उवगरणउप्पायणया, 2. साहिल्लणया, 3. वण्णसंजलणया, 4. भारपच्चोरहणया। 1. ५०–से कि तं उवगरणउपायणया? उ.--उवगरणउप्पायणया चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा 1. अणुप्पण्णाणं उवगरणाणं उप्पाइत्ता भवइ, 2. पोराणाणं उवगरणाणं सारक्खित्ता संगोवित्ता भवइ, 3. परित्तं जाणिता पच्चुद्धरित्ता भवइ, 4. अहाविहिं संविभइत्ता भवइ / से तं उवगरणउप्पायणया। 2. ५०-से कि तं साहिल्लणया? उ०-साहिल्लणया चउन्विहा पण्णत्ता, तं जहा--- 1. अणुलोमवइसहिते यावि भवइ, 2. अणुलोमकायकिरियता यावि भवइ, 3. पडिरूवकायसंफासणया यावि भवइ, 4. सव्वत्थेसु अपडिलोमया यावि भवइ / से तं साहिल्लणया। 3. प.--से कि तं वण्णसंजलणया? उ०—वण्णसंजलणया चउव्हिा पण्णत्ता, तं जहा 1. अहातच्चाणं वण्णवाई भवइ, 2. प्रवण्णवाइं पउिहणित्ता भवइ, 3. वण्णवाई अणुवूहइत्ता भवइ, 4. आय वुड्सेवी यावि भयइ / से तं वण्णसंजलणया। 4. ५०-से कि तं भारपच्चोरहणया? उ.-भारपच्चोरहणया चउबिहा पण्णसा, तं जहा 1. असंगहिय-परिजणसंगहित्ता भवइ, 2. सेहं आयारगोयरसंगहित्ता भवइ, 3. साहम्मियस्स गिलायमाणस्स अहाथाम वेयावच्चे अन्भुट्टित्ता भवइ, 4. साहम्मियाणं अहिगरणंसि उप्पण्णंसि तत्थ अणिस्सितोवस्सिए अपवखग्गहिय-ममत्थभावभूए सम्मं ववहरमाणे तस्स अधिगरणस्स खमावणाए विउसमणयाए सया समियं प्रभुट्टित्ता भवइ / ___ कहं णु साहम्मिया अप्पसद्दा, अप्पझंज्या, अप्पकलहा, अप्पकसाया, अप्पतुमंतुमा, संजमबहुला, संवरबहुला, समाहिबहुला, अप्पमत्ता, संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणा-एवं च णं विहरेज्जा / से तं भारपच्चोरहणया। एसा खलु थेरेहिं भगवतेहिं अट्ठविहा गणिसंपया पण्णत्ता। -त्ति बेमि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003495
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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