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A Sadhvi can be appointed to the Pravartiini position, but according to the Sutras, Sadhvis or Pravartiinis can also appoint other qualified Sadhvis to the Pravartiini position, unlike the general rules. This is clear from these Sutras. Other discussions should be understood in the same way as Sutras 13-14 of the fourth Uddeshak.
**15. If a newly initiated, young, or adolescent Nirgrantha forgets the Acharaprakalp (Acharanga-Nishīthasūtra), he should be asked, "O Arya! For what reason have you forgotten the study of the Acharaprakalp? Did you forget due to some reason or due to negligence?"**
________________ पांचवां उद्देशक प्रवर्तिनी पद पर किसी साध्वी को नियुक्त किया जा सकता है, किन्तु सामान्य विधान की अपेक्षा सूत्रानुसार साध्वियां या प्रवर्तिनी आदि भी अन्य योग्य साध्वी को प्रवर्तिनी आदि पद पर नियुक्त कर सकती हैं। यह इन सूत्रों से स्पष्ट होता है। अन्य विवेचन चौथे उद्देशक के सूत्र 13-14 के समान समझ लेना चाहिए। आचारप्रकल्प-विस्मृत को पद देने का विधि-निषेध 15. निग्गंथस्स णं नव-डहर-तरुणस्स आयारकपप्पे नामं अज्झयणे परिम्भठे सिया, से य पुच्छियव्वे "केण ते कारणेण अज्जो! प्रायारपकप्पे नाम-अज्झयणे परिभट्ठे ? कि प्राबाहेणं उदाहु पमाएणं ?" से य वएज्जा-"नो प्राबाहेणं, पमाएणं," जावज्जीवं तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ पायरियत वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा / से य वएज्जा-"आबाहेणं, नो पमाएणं, से य संठवेस्सामि ति" संठवेज्जा एवं से कप्पड़ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। से य "संठवेस्सामि" ति नो संठवेज्जा, एवं से नो कप्पइ पायरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। 16. निग्गंथीए णं नव-डहर-तरुणाए आयारपकप्पे नामं अन्मयणे परिम्भठे सिया, सा य पुच्छियव्या "केण भे कारणेणं अज्जे ! आयारपकप्पे नामं प्रायणे परिभो ? किं प्राबाहेणं, उदाहु पमाएणं ?" साय वएज्जा "नो प्राबाहेणं, पमाएणं", जावज्जीवं तीसे तप्पत्तियं नो कप्पइ पवत्तिणितं वा गणावच्छेइणितं वा उद्दिसित्तए वा, धारेत्तए वा।। सा य वएज्जा-"आबाहेणं, नो पमाएणं सा य संठवेस्सामि ति" संठवेज्जा एवं से कप्पा पवत्तिणित्ति वा गणावच्छेइणितं वा उद्दिसिसए वा धारेत्तए बा। साय "संठवेस्सामि" ति नो संठवेज्जा, एवं से नो कप्पइ पयत्तिणितं वा गणावच्छेइणितं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। 15. नवदीक्षित, बाल एवं तरुण निर्ग्रन्थ के यदि आचारप्रकल्प (आचारांग-निशीथसूत्र) का अध्ययन विस्मृत हो जाए तो उसे पूछा जाए कि "हे आर्य ! तुम किस कारण से प्राचारप्रकल्प-अध्ययन को भूल गए हो, क्या किसी कारण से भूले हो या प्रमाद से ? " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org