Disclaimer: This translation does not guarantee complete accuracy, please confirm with the original page text.
## Third Uddeshak [311 Upadhyaya Adi Pad Dene Ke Vidhi-Nishedh]
**3.** A Shraman Niggranth with a three-year Dikshaparaya, who is skilled in Acharakushal, Sanjamakushal, Pravachanakushal, Prajnaptikushal, Sangrahkushal, and Uvaggahkushal, and possesses Akshat Charitra, Abhinna Charitra, Asabal Charitra, and Asanklishta Achar, is Bahushrut and Bahuagmagnya, and adheres to the minimum Achar-Prakalp, is eligible for the Upadhyaya Pad.
**4.** The same Shraman Niggranth with a three-year Dikshaparaya, who is not skilled in Achar, Sanjam, Pravachan, Prajnapti, Sangrah, and Uvaggah, and possesses Kshat, Bhinna, Shabal, and Sanklishta Achar, is Alpashrut and Alpaagmagnya, is not eligible for the Upadhyaya Pad.
________________ तीसरा उद्देशक] [311 उपाध्याय आदि पद देने के विधि-निषेध ___3. तिवासपरियाए समणे निग्गथे--प्रायारकुसले, संजमकुसले, पबयणकुसले, पण्णत्तिकुसले, संगहकुसले, उवग्गहकुसले, अक्खयायारे, अभिन्नायारे, असबलायारे, असंकिलिहायारे, बहुस्सुए बभागमे, जहणेणं आयारप्पकप्प-धरे, कप्पइ उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए / 4. सच्चेव णं से तिवासपरियाए समणे निग्गथे नो आयारकुसले, नो संजमकुसले, नो पवयण कुसले, नो पण्णत्तिकुसले, नो संगहकुसले, नो उवग्गहकुसले, खयायारे, भिन्नायारे, सबलायारे, संकिलिट्ठयारे, अप्पसुए, अप्पागमे नो कप्पइ उवज्झायत्ताए उदिसित्तए। 5. पंचवासपरियाए समणे जिग्गंथे-आयारकुसले, संजमकुसले, पवयणकुसले, पण्णत्तिकुसले, संगहकुसले, उवग्गहकुसले, अक्खयायारे, अभिन्नायारे, असबलायारे, असंकिलिहायारे, बहुस्सुए, बब्भागमे, जहण्णेणं दसा-कप्प-ववहारधरे, कप्पइ प्रायरिय-उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए। 6. सच्चेण णं से पंचवासपरियाए समणे निग्गंथे-नो आयारकुसले, नो संजमकुसले, नो पवयणकुसले, नो पण्णत्तिकुसले, नो संगहकुसले, नो उवग्गहकुसले, खयायारे, भिन्नायारे, सबलायारे, संकिलिट्ठायारे, अप्पसुए, अप्पागमे नो कप्पइ आयरिय-उवमायत्ताए उदिसित्तए। 7. अट्ठवासपरियाए समणे निग्गंथे-पायारकुसले, संजमकुसले,,पवयणकुसले, पण्णत्तिकुसले, संगहकुसले, उवग्गहकुसले, अक्खयायारे, अभिन्नायारे, असबलायारे, असंकिलिट्ठायारे, बहुस्सुए, बब्भागमे, जहणणं ठाण-समवाय-धरे, कप्पइ आयरियत्ताए उवज्झायत्ताए गणावच्छेइयत्ताए उद्दिसित्तए। 8. सच्चेव णं से अट्ठवासपरियाए समणे णिग्गंथे नो प्रायारकुसले नो संजमकुसले, नो पवयणकुसले, नो पन्नत्तिकुसले, नो संगहकुसले, नो उवग्गहकुसले, खयायारे, भिन्नायारे, सबलायारे, संकिलिट्ठायारे, अप्पसुए अप्पागमे, नो कप्पइ आयरियत्ताए, उवज्झायत्ताए, गणावच्छेइयत्ताए उदिसित्तए। 3. तीन वर्ष की दीक्षापर्याय वाला श्रमण निर्ग्रन्थ----यदि आचारकुशल, संयमकुशल, प्रवचनकुशल, प्रज्ञप्तिकुशल, संग्रहकुशल और उपग्रह करने में कुशल हो तथा अक्षत चरित्र वाला, अभिन्न चारित्र वाला, अशबल चारित्र वाला और असंक्लिष्ट आचार वाला हो, बहुश्रुत एवं बहुआगमज्ञ हो और कम से कम आचार-प्रकल्प धारण करने वाला हो तो उसे उपाध्याय पद देना कल्पता है। 4. वही तीन वर्ष की दीक्षापर्यायवाला श्रमण-निर्ग्रन्थ-यदि आचार, संयम, प्रवचन, प्रज्ञप्ति, संग्रह और उपग्रह में कुशल न हो तथा क्षत, भिन्न, शबल और संक्लिष्ट प्राचार वाला हो, अल्पश्रुत एवं अल्प आगमज्ञ हो तो उसे उपाध्याय पद देना नहीं कल्पता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org