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## Second Objective: Rules and Prohibitions for Staying in a Granary
**1.** It is not permissible for Nirgranthas or Nirgranthis to stay in a granary where the following grains are scattered, spread out, scattered in heaps, or scattered widely: 1. Rice, 2. Wheat, 3. Green gram, 4. Black gram, 5. Sesame, 6. Horse gram, 7. Wheat, 8. Barley, 9. Jowar, even for a short period of time.
**2.** However, if it is known that the grains (from rice to jowar) are not scattered, spread out, scattered in heaps, or scattered widely, but are stored in heaps, in bundles, against the wall, in baskets, marked, stamped, or hidden, then it is permissible for Nirgranthas or Nirgranthis to stay there during the winter and summer seasons.
**3.** However, if it is known that the grains (from rice to jowar) are not stored in heaps, in bundles, against the wall, or in baskets, but are stored in a granary, in a loft, on a platform, or in a garland, plastered with mud or dung, covered, marked, or sealed, then it is permissible for Nirgranthas or Nirgranthis to stay there during the rainy season.
**Discussion:** These sutras describe three situations regarding houses where grains are stored. The first situation is a house where grains are scattered everywhere, which is completely impermissible.
________________ दूसरा उद्देशक धान्ययुक्त उपाश्रय में रहने के विधि-निषेध 1. उवस्सयस्स अंतोवगडाए 1. सालीणि वा, 2. वीहीणि वा, 3. मुग्गाणि वा, 4. मासाणि वा, 5. तिलाणि वा, 6. कुलत्थाणि वा, 7. गोधूमाणि वा, 8. जवाणि वा, 9. जवजवाणि वा, उक्खित्ताणि वा, विक्खित्ताणि वा, विइगिण्णाणि वा, विप्पाण्णाणि वा नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अहालंदमवि वत्थए। 2. अह पुण एवं जाणेज्जा-नो उक्खित्ताई, नो विक्खिताई, नो विइकिण्णाई, नो विप्पइण्णाई। रासिकडाणि वा, पुंजकडाणि वा, भित्तिकाणि वा, कुलियाकडाणि वा, लंछियाणि वा, मुद्दियाणि वा, पिहियाणि वा।। कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा हेमन्त-गिम्हासु वत्थए / 3. अह पुण एवं जाणेज्जा--नो रासिकडाई, नो पुंजकडाई, नो भित्तिकडाई, नो कुलियाकडाई। कोट्टाउत्ताणि वा, पल्लाउत्ताणि वा, मंचाउत्ताणि वा, मालाउत्ताणि वा, ओलित्ताणि वा, विलित्ताणि वा, पिहियाणि वा, लंछियाणि वा, मुद्दियाणि वा। कप्पा निग्गंधाण वा, निग्गंथोण वा वासावासं वत्थए / 1. उपाश्रय के भीतरी भाग (सीमा) में 1. शालि, 2. व्रीहि, 3. मूग, 4. उड़द, 5. तिल, 6. कुलथ, 7. गेहूं, 8. जो या 9. ज्वार अव्यवस्थित रखे हों या जगह-जगह रखे हों, या बिखरे हुए हों या अत्यधिक बिखरे हुए हों तो निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को वहां 'यथालन्दकाल' तक भी रहना नहीं कल्पता है। 2. यदि यह जाने कि (उपाश्रय में शालि यावत् ज्वार) उत्क्षिप्त, विक्षिप्त, व्यतिकीर्ण और विप्रकीर्ण नहीं हैं, ___किन्तु राशीकृत, पुजकृत, भित्तिकृत, कुलिकाकृत, लांछित, मुद्रित या पिहित हैं तो इन्हें हेमन्त और ग्रीष्म ऋतु में वहां रहना कल्पता है। 3. यदि यह जाने कि (उपाश्रय के भीतर शालि यावत् ज्वार) राशिकृत, पुजीकृत, भित्तिकृत या कुलिकाकृत नहीं हैं, किन्तु कोठे में या पल्य में भरे हुए हैं, मंच पर या माले पर सुरक्षित हैं, मिट्टी या गोबर से लिपे हुए हैं, ढंके हुए, चिह्न किये हुए या मुहर लगे हुए हैं तो उन्हें वहां वर्षावास में रहना कल्पता है / विवेचन–प्रस्तुत सूत्रों में धान्य रखे हुए मकानों की तीन स्थितियों का कथन किया गया है। प्रथम स्थिति है--जिस मकान में सर्वत्र धान्य बिखरा हुआ हो, वह मकान पूर्णतया अकल्पनीय होता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org