________________ उन्नीसवां उद्वशक] [425 वास्तव में चार सूत्र ही उपयुक्त हैं क्योंकि एक समान सूत्रों का एक ही प्रकरण में एक साथ पुनः पुनः उच्चारण किया जाना सूत्र रचना के योग्य नहीं होता है। अर्थ की दृष्टि से विनय आदि योग्यता का कथन प्रथम सूत्रद्विक में एवं वय आदि की योग्यता का कथन द्वितीय सूत्रद्विक में हो जाता है / अन्य सूत्र-क्रम-प्राप्त प्रादि विषय का कथन पूर्व सूत्रों में हो गया है / अतः यहाँ छः या आठ सूत्रों के विकल्प वाले पाठ स्वीकार नहीं किये गए हैं। इस प्रकार सूत्र 16 से 21 तक दो-दो सूत्रों में तीन विषय क्रम से कहे गये हैं-१. सूत्र आदि की क्रम से ही वाचना देना, 2. वह भी विनय गुण आदि से योग्य को ही देना, 3. योग्य में भी वयः प्राप्त को ही वाचना देना। इन विधानों से विपरीत आचरण करने पर प्रायश्चित्त प्राता है। वाचना देने से पक्षपात करने का प्रायश्चित्त 22. जे भिक्खू दोण्हं सरिसगाणं एक्कं संचिक्खावेइ, एक्कं न संचिक्खावेइ, एक्कं वाएइ, एक्कं न बाएइ, तं करतं वा साइज्जइ / जो भिक्षु दो समान योग्यता वाले शिष्यों में से एक को शिक्षित करता है और एक को नहीं करता है, एक को वाचना देता है और एक को नहीं देता है अथवा ऐसा करने वाले का अनुमोदन करता है (उसे लघुचोमासो प्रायश्चित्त पाता है।) विवेचन-पूर्व सूत्रों में कहे गये पात्रता के एवं व्यक्तता के गुणों से युक्त तथा सूत्र का सही परिणमन करने के शुभ लक्षणों से युक्त शिष्यों को निष्पक्ष होकर समभाव से वाचना देना चाहिए। __ योग्यता या अयोग्यता के निर्णय में विवेक के अतिरिक्त पदवीधरों की सभी शिष्यों के प्रति समान दृष्टि भी होनी चाहिए। किसी के साथ पूर्व या पश्चात् का कुछ सम्बन्ध हो तो राग-भाव से पक्षपात हो सकता है अथवा किसी के साथ या पश्चात् का अप्रिय सम्बन्ध हो तो द्वेष-भाव भी हो सकता है किन्तु पद प्राप्त एवं अध्यापन का दायित्व प्राप्त बहुश्रुत ऐसे रागद्वेष से युक्त व्यवहार न करे, यह इस सूत्र का तात्पर्य है। ऐसा करने में शिष्यों में वैमनस्य एवं गच्छ में अशान्ति-अव्यवस्था की वृद्धि होती है / अतः ऐसा करने पर वाचनादाता को सूत्रोक्त प्रायश्चित्त पाता है / ऐसे प्रायश्चित्तों के देने की व्यवस्था प्राचार्य या गणावच्छेदक करते अदत्त वाचना ग्रहण करने का प्रायश्चित्त 23. जे भिक्खू आयरिय--उवझाएहि अविदिण्णं गिरं आइयइ, आइयंतं वा साइज्जइ / जो भिक्षु प्राचार्य और उपाध्याय के दिए बिना वाचना लेता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है / (उसे लघुचौमासो प्रायश्चित्त आता है / ) विवेचन-निर्धारित क्रम के कारण किसी सुत्रादि की वाचना न देने पर, वाचना देने के अयोग्य होने से वाचना न देने पर; व्यक्त वय के अभाव में वाचना न देने पर अथवा पक्षपात की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org