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________________ 424] [निशीथसूत्र पाहार, उपकरण, शय्या एवं स्थान आदि में आसक्ति होने के कारण मनोनुकूल लाभ न होने पर उसके लिए लालायित रहने वाला एवं न मिलने पर तिनतिनाट करने वाला, खड़े रहने में बैठने में, भाषा और विचार में चंचल वृत्ति रखने वाला, प्रागमोक्त कारणों के बिना गच्छ परिवर्तन करने वाला, चारित्र पालन में मंद उत्साह वाला, प्राचार्य आदि पदवीधरों के तथा रत्नाधिक के सामने बोलने वाला अर्थात् उनका तिरस्कार करने वाला, उनकी आज्ञा एवं इच्छा के विपरीत आचरण करने वाला तथा दूसरों की निन्दा चुगलो करके उनका पराभव करने में प्रानन्द मानने वाला इत्यादि अवगुणों से युक्त भिक्षु वाचना के लिए अपात्र होता है। घमण्डी, अपशब्द भाषी तथा कृतघ्न प्रादि भी अपात्र कहे गये हैं। बहत्कल्प उद्दे. 4 में कहे गए विधि-निषेध का उल्लंघन करने पर प्रस्तुत प्रथम सूत्रद्विक से प्रायश्चित्त पाता है / अर्थात् पात्र को वाचना न देने वाले और अपात्र को वाचना देने वाले दोनों ही वाचनादाता प्रायश्चित्त के पात्र होते हैं। पात्र को वाचना न देने पर श्रुत का ह्रास होता है और अपात्र को वाचना देने का श्रुत का दुरुपयोग होता है / अतः दोनों प्रकार का विवेक रखना आवश्यक है। 2. व्यक्त-पूर्व सूत्राद्विक में भाव व्यक्त अर्थात् गुणों से व्यक्त का वर्णन "पात्र" शब्द से किया गया है और बाद के सूत्रद्विक में द्रव्य से व्यक्त अर्थात् शरीर से व्यक्त का कथन किया गया है। "जाव कक्खादिसु रोमसंभवो न भवति ताव अव्वत्तो, तस्संभवे वत्तो। अहवा जाव सोलसवरिसो ताव अश्वत्तो, परतो वत्तो।" -चूणि __कांख, मूछ आदि के बालों की उत्पत्ति होने पर व्यक्त कहा जाता है और उसके पूर्व अव्यक्त कहा जाता है। अथवा 16 वर्ष की उम्र तक अव्यक्त कहा जाता है उसके बाद व्यक्त कहा जाता है। ऐसे अव्यक्त भिक्षु को कालिकश्रुत (अंगसूत्र तथा छेदसूत्र) की वाचना नहीं दी जाती है / इसका कारण स्पष्ट करते हुए भाष्य में बताया है कि अल्प वय में पूर्ण रूप से श्रुत ग्रहण करने की एवं धारण करने की शक्ति अल्प होती है तथा भाष्यकार ने कच्चे घड़े का दृष्टान्त देकर भी समझाया है। जिस प्रकार कच्चे घड़े को अग्नि में रखा जाता है और पकाया जाता है किन्तु उसमें पानी नहीं डाला जाता है, उसी प्रकार अल्पवय वाले शिष्य को शिक्षा अध्ययः परिपक्व बनाया जाता है किन्तु उक्त आगमों की वाचना व्यक्त एवं पात्र होने पर दो जाती है। इस सूत्रद्विक में पाए “पत्त" शब्द के पात्र या प्राप्त ऐसे दो छायार्थ होते हैं, तथा "व्यक्त" के भी "वय प्राप्त" एव "पर्याय प्राप्त" ऐसे दो अर्थ होते हैं, 16 वर्ष वाला “वय प्राप्त व्यक्त" होता है और तीन वर्ष की दीक्षा पर्याय अथवा संयम गुणों में स्थिर भिक्षु “पर्याय व्यक्त" होता है / इस प्रकार से वैकल्पिक अर्थ चूर्णि में किये हैं। इन वैकल्पिक अर्थों के कारण से अथवा अन्य किसी प्राप्त परम्परा से इन चार सूत्रों के स्थान पर कहीं छः और कहीं आठ सूत्र प्रतियों में मिलते हैं / वहाँ "पत्तं-अपत्तं" के सूत्र द्विक का दुबारा या तिबारा उच्चारण किया गया है एवं वैकल्पिक अर्थों को अलग-अलग सूत्रों से सम्बन्धित किया है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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