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________________ सोलहवां उद्देशक] [365 इन सूत्रों से यह स्पष्ट सिद्ध होता है कि "गोच्छग" पात्र सम्बन्धी उपकरण नहीं है किन्तु वस्त्रों के प्रतिलेखन में प्रमार्जन करने का उपकरण है, जिसे प्रमार्जनिका (पूजणी) कहा जाता है। प्रश्नव्याकरणसूत्र श्रु. 2, प्र. 5 में अनेक उपकरणों के नाम निर्देश हैं तथा वहाँ "आदि" शब्द का भी प्रयोग किया गया है, जिससे पादपोंछन, मात्रक, आसन आदि अनिर्दिष्ट उपकरणों को ग्रहण किया जाता है / उस पाठ में भी "गोच्छग' उपकरण स्वतन्त्र कहा गया है। दशवै. अ. 4 में अनेक उपकरणों के निर्देश के साथ "गोच्छग" का भी निर्देश पात्र से अलग किया है। व्याख्याकारों ने “गोच्छग" को पात्र का ही उपकरण गिनाया एवं समझाया है और उसे ऊनी वस्त्रखण्ड बताया है। किन्तु उपर्युक्त स्पष्टीकरण से गोच्छग को पूजणी ही समझना उचित है। बृहत्कल्प सूत्र उ. 5 में तथा प्रश्न. श्रु. 2, अ. 5 में "पायकेसरिया" उपकरण का वर्णन है। जो पात्रप्रमार्जन का कोमल वस्त्र रूप उपकरण है / तुम्बे के पात्र का प्रमार्जन करने के लिए इसे भिक्षु छोटे काष्ठदंड से बांधकर भी रख सकता है, किन्तु साध्वी को काष्ठदंड युक्त रखने का बृहत्कल्पसूत्र में निषेध है। कहीं-कहीं इसे भी “गोच्छग" ही मान लिया जाता है। किन्तु प्रश्नव्याकरणसूत्र में पात्र के उपकरणों के बीच तीसरा उपकरण "पायकेसरिका" कहा है और गोच्छग अलग कहा है, अतः दोनों उपकरण भिन्न-भिन्न हैं / गोच्छग का उपयोग वस्त्र, शरीर या अन्य उपधि के प्रमार्जन के ए होता है एवं पात्रकेसरिका का उपयोग पात्रप्रमार्जन के लिए होता है / इस प्रकार दोनों का कार्य भी भिन्न-भिन्न है। रजोहरण-यह भिक्षु का आवश्यक उपकरण है। जिनकल्पी एवं स्थविरकल्पी सभी साधुओं को रखना आवश्यक होता है / खड़े-खड़े भूमि का प्रमार्जन किया जा सके, इतना लम्बा होता है तथा एक बार में प्रमार्जन की हुई भूमि में बराबर पैर रखा जा सके इतना घेराव होता है / उत्कृष्ट घेराव 32 अंगुल भी समझा जा सकता है। विशेष वर्णन उद्देशक पांच के अन्तिम सूत्रों से जानना चाहिए। चलते समय प्रमार्जन करने में तथा आसन, शय्या व मकान का प्रमार्जन करने में इसका उपयोग किया जाता है। इसे 'ऋषि-ध्वज' भी कहा गया है। आगमों में भिक्षु को 'अचेल' और 'अपात्र' (करपात्री) भी कहा है। भाष्यादि में मुहपत्ती एवं रजोहरण के सिवाय सभी उपकरणों का त्याग करना बताया है, क्योंकि ये दोनों संयम एवं जीव रक्षा के प्रमुख साधन हैं और शेष उपकरण शरीर की रक्षा एवं लज्जा की प्रमुखता से रखे जाते हैं। अल्प उपाधि रखने वाले जिनकल्पी आदि भिक्षु रजोहरण से गोच्छग का कार्य भी कर सकते हैं। साधु के सभी उपकरणों की तालिका वस्त्र माप उपकरण विवरण मुहपत्ती दो (कम से कम) लम्बाई 21 अंगुल, चौड़ाई 16 अंगुल अथवा 16 अंगुल समचौरस / एक (शरीर, उपकरण और वस्त्र के प्रमार्जन योग्य) गोच्छग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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