________________ 366] 35 हाथ 15 हाथ 7 हाथ चद्दर चोलपट्ट [निशीथसूत्र रजोहरण एक (खड़े-खड़े या चलते समय भूमिप्रमार्जन योग्य) तीन (ऊनी कम्बल या सूती चद्दर) दो (लम्बाई 5 हाथ और चौड़ाई 13 हाथ) प्रासन एक (334 2) पात्र चार (कम से कम), मात्रक अलग / पात्र के वस्त्र सात पादप्रौछन एक निशीथिया एक, रजोहरण के काष्ठदण्ड पर लगाने के लिए। तीन अखण्ड वस्त्र 72 हाथ होता है। 10 हाथ 1 हाथ 1 हाथ 70 हाथ लगभग साध्वी के सभी उपकरणों को तालिका 1. चद्दर 4 45 हाथ 2. साटिका (साड़ी)२ 20 हाथ 3. उग्गणतक, उग्गहपट्टक, कंचुकी 10 हाथ 4. शेष मुहपत्ती आदि पूर्वोक्त 20 हाथ 4 अखण्ड वस्त्र--९६ हाथ 95 हाथ लगभग उपयुक्त उपधि रखना भिक्षु की उत्सर्ग विधि है / अपवाद से अन्य उपधि आवश्यकतानुसार अल्प समय के लिए गोतार्थ भिक्षु की आज्ञा से रखी जा सकती है। किन्तु सदा के लिए और सभी साधुओं के लिए रखना उपयुक्त नहीं है। अत: अकारण कोई उपधि नहीं रखी जा सकती है / प्रोपग्रहिक उपधि इस प्रकार है 1. दण्ड 2 लाठी 3. बांस की खपच्ची 4. बांस की सुई 5. चर्म 6. चर्मकोश 7. चर्मछेदनक 8. छत्र. 9 भृशिका 10. नालिका 11. चिलमिली 12. सूई 13. कैंची 14. नखच्छेदनक 15. कर्णशोधनक 16. कांटा निकालने का साधन इत्यादि प्रोपग्रहिक उपकरणों का उल्लेख आगमों में है / भाष्य में प्रापवादिक औपग्रहिक उपकरण इस प्रकार कहे हैं पीठग' णिसज्ज दंडग पमज्जणी घट्टए डगलमादी / ... पिप्पल* सूयि -णहहरणि", सोधणगदुर्ग- जहण्णो उ // 1413 // वासत्ताणे पणगं१०, चिलमिलि'' पणगं दुगंच१२ संथारे / दंडादि' पणगं पुण, मत्तग तिगं पादलेहणिया // 1414 // चम्मतिग: पट्टदुगं७ णायव्वो....... .......................||1415 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org